कुछ समय पहले दंगल फिल्म में गीता फोगाट की भूमिका निभाने वाली कश्मीर की युवा अभिनेत्री जायरा वसीम को मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात के कारण सोशल मीडिया पर ट्रोल का शिकार होना पड़ा। ट्रोल यानी सोशल मीडिया पर किसी के पक्ष या विपक्ष में अंधाधुंध तरीके से लिखना। सोशल मीडिया पर मिली धमकियों से परेशान होकर जायरा को फेसबुक पर खुला खत लिख कर माफी मांगनी पड़ी। इससे पहले क्रिकेटर मोहम्मद शमी को भी फेसबुक पर अपनी बीवी के साथ फोटो डालने के कारण कई लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा था। दरअसल, मोहम्मद शमी ने अपनी बीवी और बेटी की तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट की। उसमें उनकी बीवी के कपड़े के कारण शमी को लोगों से भद्दी टिप्पणियां और सलाह मिली। हालांकि वह कपड़ा कहीं से भी आपत्तिजनक नहीं था और वह उनकी सुविधा और पसंद का मामला था। लेकिन ट्रोल करने वालों ने कई आक्रामक टिप्पणियां कीं, जैसे- ह्यशर्म करें शमी! आप एक मुस्लिम हैं, बीवी को पर्दे में रखें, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि औरत को कैसे रखा जाता है आदि।

मोहम्मद शमी ने लोगों की भद्दी टिप्पणियों का जवाब देते हुए लिखा कि ये दोनों मेरी जिंदगी और जीवनसाथी हैं। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं? …सबसे पहले हमें अपने अंदर देखना चाहिए कि हम खुद कितने अच्छे हैं? मैं शमी की बात से सहमत हूं, क्योंकि दूसरों को सलाह देने से पहले हमें अपने अंदर देखना चाहिए कि हम अपने स्तर पर कितने अच्छे हैं? मसलन, एक व्यक्ति ने शमी के फोटो पर टिप्पणी की कि ह्यआपको शर्म आनी चाहिए कि आपकी बीवी की ड्रेस का इतना बड़ा गला है। अपनी बीवी को इस्लामी तरीके पर रखो, अल्लाह के लिए! मैंने जिज्ञासावश उसकी फेसबुक प्रोफाइल देखी तो मुझे उनकी टाइमलाइन पर बहुत सारे फोटो देखने को मिले। फोटो में वह जींस-टीशर्ट में नजर आ रहे थे और उन्होंने अपनी टाइमलाइन पर बॉलीवुड के हीरो-हीरोइनों के फोटो टिप्पणी के साथ पोस्ट किए हुए थे। जैसे खूबसूरत अदाएं, ह्यवाह! क्या डांस है और कुछ अन्य आपत्तिजनक शब्द।

गौर करने वाली बात यह है कि दूसरों की फोटो पर धर्म और पहनावे का हवाला देकर टिप्पणी करने से पहले शायद वे भूल गए कि इस्लाम में मर्दों के पहनावे और गैर-औरत को देखने आदि से संबंधित कुछ नियम-कायदे दर्ज हैं। जैसे मर्द को टखने से ऊपर पैंट-पाजामा पहनना चाहिए… ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए, जिसमें जिस्म दिखे और गैर-औरत को देख कर नजर झुका लेनी चाहिए… आदि। प्रश्न उठता है कि जब आप खुद उन नियम-कायदों का पालन नहीं कर रहे हैं तो दूसरों की बीवी को इस्लामिक तरीके से रहने के लिए सलाह क्यों दे रहे हैं? दूसरा, भारतीय संविधान सभी को अपनी मर्जी से जीवन जीने और कपड़े पहनने का अधिकार देता है। आप अपने विचार किसी दूसरे व्यक्ति पर थोप नहीं सकते हैं। यह तो केवल एक उदाहरण है। अगर सभी टिप्पणी करने वालों की प्रोफाइल देखी जाए तो ऐसे असंख्य उदाहरण मिल जाएंगे।

अगर आपके विचार किसी दूसरे की विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं तो प्रबल संभावना रहती है कि आपको विरोधी या किसी अन्य विचारधारा विशेष का भक्त या दलाल साबित कर दिया जाएगा और आपकी पोस्ट पर भद्दी टिप्पणी और अश्लील शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। प्रश्न केवल किसी की विचारधारा से सहमति और असहमति का नहीं है, क्योंकि हर इंसान की अपनी पसंद और मान्यताएं होती हैं, जिसके अनुसार वह अपना जीवन व्यतीत करता है। दरअसल, यह विषय अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का है। एक ऐसी आजादी, जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर बिना सोचे-समझे टिप्पणी कर देता है। सोशल मीडिया पर मौजूद बहुत सारे लोगों की राय पूर्वाग्रहों से ग्रस्त नजर आती है।
सोशल मीडिया आने वाले समय में क्या रूप धारण करेगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन आज यह धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर हावी होता जा रहा है। जैसे ही कोई घटना सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगती है शाम होते-होते वह टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम में चर्चा का विषय बन जाती है। उद्घोषक प्रश्न के माध्यम से चर्चा के विषय पर ह्यहांह्ण और ह्यनहींह्ण में लोगों से राय मांगता है। ध्यान देने योग्य बात है कि वह भी लोगों की राय मांगने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा लेता है। चर्चा के अंत में लोगों की राय को प्रतिशत के रूप में टीवी स्क्रीन पर दिखाया जाता है। इस तरह सोशल मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बहस के लिए नए विषय दे रहा है और फिर उन्हीं विषयों पर अपनी राय भी दे रहा है। ट्रोल के बढ़ते स्वरूप में सोशल मीडिया आपसी द्वेष, उत्तेजना और एक-दूसरे के प्रति असहिष्णुता का वातावरण निर्मित करता नजर आता है।