विजय विद्रोही
दिल्ली के जंतर मंतर पर आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान गजेंद्र सिंह राजपूत नाम के एक किसान ने पेड़ पर फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली। वह राजस्थान के दौसा जिले की बांदीकुई तहसील का रहने वाला था। गजेंद्र सिंह ने जान देने की वजह भी बताई। उसके पास से मिले पर्चे में लिखा था कि उसकी तीन बेटियां हैं, उसकी फसल बर्बाद हो गई, उसे कोई मदद नहीं मिली, उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, उसे उसके पिता ने घर से निकाल दिया है, वह अपने घर जाना चाहता है। गजेंद्र चाहता था कि कोई उसे घर जाने का रास्ता बता दे, दिखा दे। लेकिन अब वह घर कभी नहीं जा पाएगा! अब उसकी मौत पर तमाम नेता और मुख्यमंत्री तक अफसोस व्यक्त करेंगे। उसके परिवार को शायद मुआवजा भी मिलेगा। हो सकता है कि भाजपा की राज्य सरकार या फिर विपक्षी कांग्रेस उसके तीन बच्चों की परवरिश का जिम्मा भी उठाने की घोषणा कर दें। यह सब नहीं होता, अगर गजेंद्र सिंह जिंदा रहता। वह जिंदा रहता तो उसे अफसरों और नेताओं के दफ्तर या घर के चक्कर काटने पड़ते। मुआवजे के लिए हाथ पसारने पड़ते, भूखे बच्चों के लिए भीख मांगनी पड़ती। हालांकि गजेंद्र सिंह के चाचा उसके गांव झामरवाड़ा नांगल के सरपंच थे। फिर भी गजेंद्र सिंह को मरना पड़ा।
सवाल है कि क्या अब भी राजस्थान की सरकार यही मानेगी कि गजेंद्र सिंह ने फसल खराब होने की वजह से खुदकुशी की? खबरें आ रही हैं कि पिछले दिनों की बेमौसम बारिश और ओले पड़ने के कारण राजस्थान में साठ से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा सौ को छू रहा है, जहां समाजवादी पार्टी की सरकार है। महाराष्ट्र में पिछले तीन महीनों में छह सौ किसान खुदकुशी कर चुके हैं, जहां भाजपा की सरकार है। लेकिन कुछ दिन पहले लोकसभा में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने सूचनाओं के आधार पर बताया था कि देश में बेमौसम की बारिश से फसलें तो खराब हुई हैं, लेकिन एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की। गजेंद्र सिंह की मौत पर भाजपा के कुछ नेताओं ने मुझे फोन करके कहा कि साफा लगा कर, झाड़ू हाथ में लेकर नारे लगाते हुए क्या कोई आत्महत्या करता है! संभव है कि कुछ दिनों बाद यह भी कहा जाने लगे कि गजेंद्र सिंह ने फसल खराब होने के कारण खुदकुशी नहीं की, वजह कोई दूसरी रही होगी।
दौसा वही लोकसभा सीट है जहां से किसान नेता राजेश पायलट कई बार चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। उन्हीं के बेटे सचिन पायलट इस समय राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और एक बार वे भी दौसा से चुनाव जीत चुके हैं। इस समय यहां से सांसद भाजपा के हरीश मीणा हैं जो राजस्थान पुलिस के मुखिया रह चुके हैं। दौसा की बांदीकुई विधानसभा सीट भी भाजपा के कब्जे में है और राज्य में भाजपा की सरकार है। सवाल उठता है कि कांग्रेस और भाजपा किसानों के लिए बातें तो बहुत करती हैं, लेकिन फिर क्यों एक बार की फसल खराब होने पर गजेंद्र को खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अगर गजेंद्र के पास खाने के लाले थे तो जिला प्रशासन क्या कर रहा था। फसल खराब होने पर क्या राज्य सरकार का काम केंद्र सरकार के पास सूचना देना भर ही होता है? राज्य सरकारों के पास भी सहायता कोष होता है। उसमें पैसों का इस्तेमाल गजेंद्र सिंह जैसों की मदद करने के लिए क्यों नहीं किया गया?
एक सवाल आम आदमी पार्टी से भी पूछा जाना चाहिए। जब गजेंद्र सिंह पेड़ पर लटक रहा था तब ‘आप’ के नेताओं के भाषण चल रहे थे। बाकायदा बताया जा रहा था कि अपना भाषण खत्म करके अरविंद केजरीवाल अस्पताल जाएंगे। तब रैली रोकी क्यों नहीं गई? पुलिस गजेंद्र सिंह को उतारने के लिए फायर ब्रिगेड का इंतजार क्यों करती रही? पुलिस के जवान थे, पेड़ पर चढ़ कर क्या उसे उतारा नहीं जा सकता था? क्या केजरीवाल के कार्यकर्ता भी यही काम नहीं कर सकते थे? अब सामने आ रहा है कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से जानकारी मांगी है। सवाल उठता है कि क्या सिर्फ जानकारियां ली जाएंगी! क्या यह कभी तय हो सकेगा कि गजेंद्र सिंह की खुदकुशी के लिए जिम्मेदार कौन है और क्या उसे सजा मिल सकेगी?
अल्लामा इकबाल ने पचास के दशक में ही लिखा था- ‘जिस खेत से दहकां को मयस्सर न हो रोटी, उस खेत के हरेक गोश-ए-गंदम को जला दो!’
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