लक्ष्मीकांता चावला
दिल्ली को सुंदर बनाने की चर्चा और इस दिशा में कुछ काम हर सरकार करती रही है, पर इस सुंदरता के साथ ही यह दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित महानगरी बन गई है। सुना होगा आप सबने, ‘मरे को मारे शाह मदार’! प्रदूषण से कुछ राहत पाने के लिए दिल्ली में डीजल से चल रहे वाहनों को सड़कों से दूर करने का आदेश सुनाया गया है। यह नहीं सोचा कि जो वाहन चालक, खासकर इनसे रोटी कमाने वाले, नई गाड़ियां नहीं ले सकते, उनका क्या होगा। बहुत अच्छा होता अगर सरकार इनकी पुरानी गाड़ियां लेकर आसान किस्तों पर नई गाड़ियां देने की खुद कोई व्यवस्था करती। देश के लगभग सभी बड़े शहर इसी समस्या से जूझ रहे हैं। जिस देश में पीने का साफ पानी और हवा भी न मिले, वहां लोग कैसे स्वस्थ रह सकते हैं! पिछले दिनों यह चर्चा भी सरकारों ने की थी कि प्रदूषित वातावरण में रहने से आयु कम हो जाती है और कई बीमारियों का, खासकर सांस से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ता है।
पंजाब में प्रदूषण के मामले में मानो दो शहरों के बीच मुकाबला है- लुधियाना और अमृतसर। लुधियाना व्यापारिक दृष्टि से भीड़भाड़ वाला शहर है, तो अमृतसर धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की दृष्टि से पर्यटन का महत्त्वपूर्ण केंद्र है। कुछ सप्ताह पहले प्रदूषण की चिंता लेकर भारत सरकार की ओर से भेजी गई संसदीय समिति पंजाब पहुंची थी। इस समिति के सदस्यों ने लुधियाना और अमृतसर में विभिन्न वर्गों के लोगों से विचार-विमर्श और वहां की स्थितियों का अध्ययन किया। हालांकि समिति ने अमृतसर में एक शानदार होटल के ठंडे कमरे में बैठ कर नई तकनीक के सहारे ही शहर की गंदगी को देखा। लेकिन यह रिपोर्ट दी गई कि अमृतसर की स्थिति अच्छी नहीं है।
विडंबना यह है कि संसदीय समितियों की अधिकतर रिपोर्टें इतनी धीमी गति से चलती हैं कि वर्षों तक जनता को इससे कोई राहत नहीं मिल पाती। सवाल है कि सरकार किस प्रदूषण को लेकर चिंतित है? पंजाब के बहुत-से बड़े शहरों में घनी आबादी के बीच श्मशान बने हैं। हर रोज दर्जनों शव वहां जलाए जाते हैं और उनका धुआं शहरवासियों को अशुद्ध वातावरण में सांस लेने को विवश करता है। आश्चर्य है कि प्रदूषण का जो एक बड़ा कारण पंजाब के कुछ नगरों, खासकर अमृतसर में सभी देखते और उससे परेशान होते हैं, उसका समाधान करने की किसी को फुर्सत नहीं। सरकारी आदेश के मुताबिक खेतों में गेहूं के डंठल और घास-फूस जलाना मना है, क्योंकि इनका धुआं कई प्रकार की बीमारियों का कारण बनता है। मगर लोग खुलेआम ऐसा करते हैं और उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई इसलिए नहीं होती कि वे चुनावों में राजनेताओं की जीत-हार का प्रमुख कारण बनते हैं।
शहरों में हफ्तों गंदगी के ढेर बिखरे रहते हैं, बदबू फैलाते रहते हैं, मच्छरों-मक्खियों के पैदा होने का कारण बनते हैं, सीवर का गंदा पानी सड़कों पर फैला रहता है। इससे ज्यादा प्रदूषण भला और कहां पैदा होगा। लेकिन कोई भी इस समस्या को देखने-सुनने को तैयार नहीं। आश्चर्य है कि जिनका यह कर्तव्य है कि जनता को साफ-सुथरे गली-बाजार दें, समय पर कूड़ा उठवा कर शहर से दूर भेजें, वे सब इस भयानक सच्चाई से मुंह छिपा कर चंडीगढ़ या दिल्ली पहुंच जाते हैं और बेचारी जनता इसी गंदगी के बीच जीती-मरती है।
पिछले दिनों पंजाब के स्कूलों में पानी के नमूने लिए गए। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इक्कीस नगरों के स्कूलों में पीने का पानी प्रदूषित पाया गया। बोतलबंद पानी पीने वाले अपने बच्चों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। जितने भी बच्चे अमीरी के प्रतीक पब्लिक स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, वे आमतौर पर पीने का पानी भी घर से लेकर जाते हैं। क्या यह सरकारों के मुंह पर एक धब्बा नहीं कि मंगल पर पानी ढूंढ़ने वाले देश के लोग और अपने पानी को अमृत कहने वाले पंजाब के लोग विद्यार्थियों को स्वच्छ पानी भी नहीं दे सकते?
पहले सभी तरफ से सताए लोग पीपल, वट, नीम जैसे पेड़ों के नीचे बैठ कर शुद्ध प्राण-वायु ले सकते थे। लेकिन पंजाब सरकार के जन-विरोधी सोच ने विकास के नाम पर हजारों वृक्ष कटवा दिए। विकास का दावा करने वाली सरकारें आजादी के अड़सठ वर्ष बाद भी पूरे देश में शौचालय नहीं दे पार्इं। गली-गली में जेनरेटरों का धुआं और शोर, अमीरों के एअरकंडीशनरों से निकलती अशुद्ध हवा, दिन-रात चलने वाले लाउडस्पीकरों का शोर, ध्वनि प्रदूषण- सब आम आदमी को ही पीड़ा देता है, उसी की आयु कम करता है। अब आंकड़े इकट्ठा करने से ज्यादा जरूरी है इस बात पर विचार करना कि प्रदूषण से मुक्ति कैसे मिल सकती है। बड़े उद्योगों से पैदा होने वाला प्रदूषण तो बड़ों की बात है, आम आदमी की गलियों की तकलीफ सरकारों और संसदीय समितियों की प्राथमिकता में नहीं हैं!
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