सुबह-सुबह धूप में खिली हरियाली एक अलग ही दुनिया की कहानी कहती है। सुबह हो और ठंडी हवाओं के बीच सूर्य की किरणें खेतों को दुलराते हुए इस तरह हरियाली को सामने लाती हैं कि देखते ही बनता है। दरअसल, सुबह, हरियाली और इसकी ताजगी एक अलग ही दुनिया की ओर ले जाती हैं। यहां सब खिला हुआ दिखता है। एक नयापन, एक नई कहानी, एक नई जिंदगी जैसे खिल रही हो। फसलों की चमक में किसान का मन दिखता है। उसकी खुशी दिखती है। इस हरियाली को देखते हुए मन में एक उम्मीद जगती है कि फसल अच्छी होगी और आंगन धन-धान्य से भर जाएगा। यह सब किसान को उम्मीद की लहराती फसलों में दिखता है। इसे वह अपने बच्चों की तरह देखता है। इससे प्यार करता है। इस प्यार से दुनिया को भी जीवन मिलता है।
किसान की मेहनत और सूर्य की किरणों का सुनहरापन नया रंग सृजित करता है
फसल किसान के बच्चे ही तो हैं, जिसमें उसकी उम्मीद छिपी होती है। इन्हीं के भरोसे वह किसी से उधार ले लेता है, बहुत सारे मंसूबे बांध लेता है, जिसमें घर-परिवार को थोड़ी खुशी मिले। फसलों के ऊपर ओस की बूंदें कुछ यों कहती हैं कि यहीं जीवन का राग है। यहां की हरियाली में मिट्टी की उर्वरा शक्ति, किसान की मेहनत और सूर्य की किरणों का सुनहरापन एक साथ मिलकर कुछ ऐसा रंग सृजित करता है कि आप जो देख रहे हैं, इसे प्रकृति में हर क्षण परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजारा जा रहा है। यहां कोई भी रंग स्थिर नहीं है। सब कुछ गति की तरंग पर चल रहा है। धूप के साथ रंग में छाया का मिश्रण होते ही एकदम से एक नया रंग आ जाता है तो यहीं से एक दूसरा रंग चमक जाता है। यहां हरापन ही न जाने कितने रंग-रूप में मिल जाएगा कि क्या बताएं!
आसपास के हरे-भरे संसार को महसूस करें तो जिंदगी में सुकून मिलती है
खेत के अलग-अलग छोर पर अलग-अलग रंग और मूल में रंग का एक रूप। यही दुनिया है, जिसे हम प्रकृति के विस्तार में देखते रहते हैं। खेत-खलिहान और रास्ते से गुजरते हुए हरियाली को, अपने आसपास को और हरे-भरे संसार को महसूस करते चलें तो जिंदगी में सुकून की छाया आपसे आप बनती जाती है। यह सुकून आंखों को जहां राहत देता है, वहीं मन को अपार शांति और समृद्धि का एहसास करा जाता। जिधर देखो उधर ही लोग परेशान हैरान घूम रहे हैं, जिसके पास कुछ नहीं है। यहां तो पूछ ही उसी की होती है, जिसके पास कुछ है।
संसार में रहने के लिए कुछ होना पड़ता है और उसे दर्ज कराना पड़ता है। पर प्रकृति में सबकी सुनी जाती है। वहां समान भाव से एक बराबर सबको प्रकृति का विस्तार मिलता है। उसके आंगन में सबके लिए जगह है। यहां आकर आदमी अपने दुख-दर्द भूल जाता है। इसलिए कहा जाता है कि सांसारिक दुख से निकलने के लिए प्रकृति के आंगन में, आसपास के संसार में आते रहना चाहिए। बहुत सारे लोग दूर-दूर तक घूम आते हैं।
प्रकृति के विराट रूप को भी देख आते हैं, अपनी आंखों में पूरी प्रकृति को भर आते हैं। दो-चार दिन उस विराटता की चर्चा करते हैं या उस रंग रूप की चर्चा करते हैं, जिसे देखकर आते हैं। जैसे कि हाल ही में पहाड़ों पर बर्फ की चादर बिछ गई। इसे देख जो लौटे होंगे, वे दो-चार दिन उस बर्फ की, ठंडी हवाओं की चर्चा करने के बाद फिर अपनी उसी दुनिया में आ जाएंगे, जिसमें रहते थे। इन्हें प्रकृति उस तरह से समृद्ध नहीं कर पाती, जैसे करना चाहिए। ये प्रकृति के पास, प्रकृति के अंत:स्थल को न देख कर दूर से ही प्रकृति को देख भावविभोर होकर आ जाते हैं और एक समय के बाद प्रकृति इनसे दूर हो जाती है। लेकिन इसका असर कई बार ऐसा जरूर होता है, जो इन्हें बार-बार प्रकृति की गोद में खींच लाता है।
जब हम प्रकृति को मन की आंख से अपनी आत्मा में संजो कर रखते हैं तो प्रकृति हमारे जीवन को न केवल सीख देती है, बल्कि अपने विराट और विस्तार से जोड़ देती है। प्रकृति की विराटता हो या सूक्ष्मता- हर जगह प्रकृति में गति, समभाव और सुकून की दुनिया की ऐसी छाया होती है कि उसमें पड़े बिना हम रह नहीं सकते। यहां जो प्रकृति का विस्तार है वह हमें सांसारिक विविधता, अनंत रंगमयता और जीवन के विस्तार के साथ-साथ लोकतांत्रिक जीवंतता को जीने का अवसर उपलब्ध कराती रहती है।
संसार को देखते हुए जीवन का विस्तार करना चाहिए। अपने आसपास के संसार को, अपने आसपास की दुनिया को और उस सकारात्मकता को देखना चाहिए, जिससे जीवन ठीक से संभव होता है। खेत, हरियाली और रास्ते हमें हमेशा एक सुकून भरी दुनिया से जोड़ने का काम करते हैं। धूप में खिली हरियाली कुछ इस तरह ही है, जैसे किसी वृत्त पर खिला हुआ ताजा टटका फूल हो। दूर-दूर तक फैली हरियाली मन मोह लेती है जो खेतों से निकलती है और सूर्य की किरणों के बीच चमक रही होती है। इस चमक को देखा जाए तो दुनिया को देख लिया जाए।