विजया सती

जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2014: पिछले महीने विश्वविद्यालय में नया सत्र शुरू होते ही लंबी छुट्टियां मिलीं। जैसे हमारे देश में ईद और दिवाली पर धूमधाम रहती है, उपहारों की खरीदारी का अंतहीन सिलसिला जारी रहता है, यहां दक्षिण कोरिया के त्योहार ‘छूसक’ पर वैसा ही कुछ दिखाई दिया। इस त्योहार के स्वरूप पर कई टिप्पणियां देखने को मिलीं। एक यह कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की तरह छूसक कृतज्ञता-ज्ञापन का उत्सव है। इस दिन कोरियाई जनसमूह अपने पूर्वजों को आदरसहित याद करते हुए जीवन में उनके आशीर्वाद के लिए कृतज्ञ होते हैं और आने वाले समय में उसके आकांक्षी भी। दूसरी टिप्पणी यह देखी कि छूसक नई फसल के आगमन का शुभ अवसर है, जब किसान अपनी मेहनत को साकार पा झूम उठता है। नया चावल जो अप्रैल माह में लगाया गया था, अब तैयार होने पर उसकी मिठाइयां बनती हैं। नाशपाती और सेब जैसे फल भी जो तेज गरमी के कारण पक चुके हैं, परिवार के साथ अनुष्ठानपूर्वक सुबह सर्वप्रथम पूर्वजों को अर्पित किए जाते हैं! घर में यह अनुष्ठान पूरा होने पर परिवार पूर्वजों के स्मृति-स्थलों पर जाकर उनकी सफाई और वहां श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद सभी मिल कर इस अवसर के लिए खासतौर पर तैयार किया गया सुस्वादु परंपरागत भोजन करते हैं। छूसक के दिन सुबह जिस पारंपरिक तरीके के सज्जित फल, मिठाई, चावल से बनी विशेष खाद्य सामग्री को घर के अग्रज सबसे पहले अपने पूर्वजों के निमित्त रखते हैं, उसे देख कर भारत में किसी के निधन के बाद होने वाली श्राद्ध और बाद में पिंडदान की रिवायत की याद आई। रात को पूर्णचंद्र देख आनंदित होने, पारंपरिक वेशभूषा पहन मन के उल्लास को अभिव्यक्त करने, पारंपरिक खेल खेलने और महिलाओं द्वारा किए जाने वाले एक विशेष नृत्य से सजा त्योहार है छूसक। जब शहरी कोरिया निवासी अगले छूसक की प्रतीक्षा के साथ अपने गृह-नगरों से कामकाजी शहरों की ओर वापसी करते हैं, तो मन में पूर्वजों के आशीर्वाद की आकांक्षा लिए कि साल का हर दिन छूसक हो, जब सब मिल-बांट कर खाएं!

पिछले कुछ दशकों के औद्योगीकरण और शहरीकरण के दौर के कारण अपने पैतृक निवास जाने वालों की भीड़ कम नहीं हुई है। समय अधिक लगता है, पर मन में घना उत्साह लिए, उपहारों से लदे हुए लोग निकल जाते हैं अपने गृह-नगरों की ओर। सतह पर समाज बदल गया है, पर भावनाएं और संस्कार वही हैं। त्योहार की इसी हलचल के बीच लंबा अवकाश है। देश भर के लिए आह्लाद के इस अवसर पर अपने घरों से दूर बैठे विदेशी भी सर्वथा भुला नहीं दिए गए हैं। उनके और इस समय देश में उपस्थित पर्यटकों के लिए विशेष पर्यटन स्थलों पर प्रवेश निशुल्क कर दिया गया है, बशर्ते वे पारंपरिक कोरियाई परिधान पहन कर आएं। छूसक के पूरे आयोजन को न केवल देखने, बल्कि उसमें शामिल होने के सुखद अवसर भी स्थान-स्थान पर जुटाए जाते हैं।
देश की नई जीवनचर्या ने पर्व के पारंपारिक रूप को बदल दिया है, इस स्वर को भी मैं सुन पाई। अखबार जानकारी दे रहे थे कि कुछ लोगों के लिए त्योहार जैसे एक लंबी छुट्टी है; कुछ लोग अपने छूटे हुए काम पूरे करेंगे या आराम करेंगे। सत्तर से पहले कोरिया ग्रामीण कृषि समाज था। अब युवा पीढ़ी पढ़ाई और नौकरी की तलाश में शहरों का रुख करती है। तकनीकी विकास ने यों भी बदला है देश का मिजाज कि लोग स्मार्टफोन पर शुभकामना संदेश या तोहफों के कूपन भेज देते हैं मित्रों को! फर्क यह भी आया है कि लोग परंपरागत बाजारों में नहीं जाते, जहां से खरीदी सामग्री को सजाना-संवारना पड़ता है। बड़े मॉलों से वह सब खरीद लेते हैं जो तैयार और आकर्षक है। पर कोरियाई सरकार सजग है, जिसने सुनिश्चित किया कि परंपरागत छोटे बाजारों में भी व्यापार हो। इसलिए यह नीति लागू हुई कि बड़े बाजार कुछ खास दिन बंद रहेंगे, ताकि इन छोटे बाजारों की ओर भी जनता का रुख हो।
मानसिकता बदली है और समाज में उसकी स्वीकृति है। पिछली पीढ़ी की तरह तमाम कठिनाई झेल कर गृहनगर के लिए भीड़ भरी यात्राएं अगर आज के युवा कोरियाई नहीं कर पाते हैं, तो शहर से दूर रहने वाले उनके माता-पिता खुशी-खुशी यह यात्रा करने को तैयार हो जाते हैं! कामकाजी बच्चों को परेशानी से बचाने के लिए वे आते हैं और त्योहार मना कर चले जाते हैं। बदलती सामाजिक संरचना में सहर्ष अपनी उपस्थिति को मूल्यवान बनाए रखने का यह भाव मुझे प्रेरित और प्रभावित करता है।

 

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