कुछ समय पहले आजमगढ़ में लगे एक पुस्तक मेले में जाना हुआ। पिछले उन्नीस सालों से शहर की आपाधापी से अलग शिब्ली स्कूल में एक हफ्ते का मेला लग रहा है। नेशनल बुक ट्रस्ट सहित अन्य प्रकाशक भी मेले में भागीदारी करते हैं। मेले के अलावा पूरे हफ्ते संवाद, चित्रकला, निबंध लेखन जैसी गतिविधियां भी आयोजित की जाती हैं। इस पुस्तक मेले के जरिए लोगों को पुस्तकों से और दुनिया से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। इसके आयोजक राहुल सांकृतायन, शिब्ली नोमानी, कैफी आजमी जैसे लोगों की जमीन रही आजमगढ़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक छवि को आगे लाना चाहते हैं। आजमगढ़ शैक्षिक रूप से पिछड़ा हुआ जिला है। कमिश्नरी का मुख्यालय होने के बावजूद यहां अभी भी कोई विश्वविद्यालय नहीं है।

आज भी आजमगढ़ में कुछ नौजवान आवासीय विश्वविद्यालय की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन शिक्षा के महत्त्व और सामाजिक प्रतिबद्धता के चलते आजमगढ़ के धारसेन-बिंदवल में पैदा हुए शिब्ली नोमानी ने 1883 में अपने निवास स्थान पर ‘नेशनल स्कूल’ की स्थापना की थी। वे चाहते थे कि इस स्कूल में पढ़ने वाले पांचवीं कक्षा के विद्यार्थी अंग्रेजी में भी दक्ष हों। आगे चल कर यह नेशनल स्कूल शिब्ली नेशनल इंटर स्कूल और शिब्ली नेशनल पीजी कॉलेज, शिब्ली एकेडमी जैसी संस्थाओं के रूप में विस्तारित हुआ। ये संस्थाएं स्थानीय लोगों को आज भी शिक्षा प्रदान कर रही हैं। गौरतलब है कि मुसलिम विद्वान शिब्ली नोमानी ने देश विभाजन के मुद्दे पर जिन्ना के दो राष्ट्रों के सिद्धांत का विरोध किया था। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले के हिन्द स्वराज की मांग का समर्थन किया था। आजादी के आंदोलन के दौरान शिब्ली-मंजिल में जवाहरलाल नेहरू और तेजप्रताप सप्रू जैसे लोगों का आना-जाना रहता था। बहरहाल, मुझे उस पुस्तक मेले में शिब्ली के विद्यार्थियों और शिक्षकों से संवाद करने का मौका मिला। जब मैं शिब्ली स्कूल के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा तो ढेरों साइकिलें खड़ी थीं। मेरा ध्यान कुछ गुलाबी साइकिलों पर गया। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। निश्चित रूप से ये साइकिलें लड़कियों की थीं। आजमगढ़ जैसे शहर में लड़कियों की गुलाबी साइकिल एक बदलते समाज की तरफ इशारा कर रही थीं और लड़कियों के हौसले और हिम्मत की झलक दे रही थीं। लड़कियों की ये साइकिलें सिर्फ साइकिलें नहीं थीं, बल्कि उनके बढ़ते आत्मविश्वास, सड़क पर जोखिम लेने की तैयारी और बेहतर भविष्य की आहट की तरह लगी।

पूर्वांचल के समाज में लड़कियों-महिलाओं के साथ लिंग और जाति-धर्म आधारित भेदभाव की जड़ें बहुत गहरी हैं और महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। इन इलाकों में मनचलों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के चलते, लड़कियों और महिलाओं को सड़क, बस अड्डे या बस स्टॉप और रेलवे स्टेशन पर भद्दी और द्विअर्थी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। पूर्वांचल में विशेष रूप से होली के महीने में अश्लील भोजपुरी गानों की भरमार हो जाती है। बनारस, आजमगढ़, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, गाजीपुर, बक्सर में चलने वाली निजी बसों और टेम्पो में मार्च के महीने में ये द्विअर्थी गाने जोर-शोर से बजते हैं और यात्री उनको मजबूरी में सुनते रहते हैं। इसी इलाके में लड़कियां अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए साइकिल से स्कूल जाने का जतन कर रही हैं! ऐसे उदाहरण देश के अन्य इलाकों में भी होंगे, लेकिन यह भी मुझे महत्त्वपूर्ण लगा।

दरअसल, आजमगढ़ समय-समय पर अपराध, माफिया, आतंकवाद के नाते चर्चा में आता रहता है। यह कितना वास्तविक है, मैं उस बहस में नहीं पड़ना चाहता, क्योंकि देश के दूसरे कई हिस्से भी इससे अछूते नहीं हैं। इससे इतर मुझे ऐसा बताया गया कि शिब्ली कॉलेज में अब लड़कियों का नामांकन लड़कों से ज्यादा हो गया है। मैं शिब्ली स्कूल के मेले में अधिक संख्या में लड़कियों-महिलाओं को पुस्तक खरीदते हुए देख चुका था। इसी कॉलेज की पढ़ी हुई एक शिक्षिका ने लड़कियों की शिक्षा को लेकर नकारात्मक सामाजिक दबाव का अपना अनुभव बताया और लड़कियों की हौसला-अफजाई की। संवाद के एक सत्र में मुसलिम और हिंदू लड़कियों का समूह बैठा था। इस क्रम में लड़कियों की शिक्षा में आने वाली बाधाओं, तकनीक और शिक्षा के बदलते स्वरूप, शिक्षा और पलायन, शिक्षा और बदलते सामाजिक मूल्य पर बातचीत हुई। लड़कियों के समक्ष, भ्रूण-हत्या, भेदभाव, तेजाब फेंकने से लेकर उनके पढ़ने पर पाबंदी की कोशिशों के अलावा दुनिया भर में शिक्षण संस्थाओं, विद्यार्थियों और शिक्षकों पर हो रहे हमले की घटनाएं भी चिंता की वजह बनीं। लड़कियों ने सवाल-जवाब के क्रम में सामाजिक बराबरी के मुद्दे उठाए और खेलों में अपनी भागीदारी की इच्छा जाहिर की। यह सब एक सुखद बदलाव की आहट जैसी लगी।
वहां से लौटते और मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते हुए मैं आश्वस्त था कि जो गुलाबी साइकिलें बाहर खड़ी थीं, आने वाले दिनों में न सिर्फ उनकी संख्या में इजाफा होगा, बल्कि लड़कियां सामाजिक चुनौती पार करके कामयाबी की नई ईबारत लिख रही होंगीं।