राजकिशोर
आज जब भारत एक महान परिवर्तन से गुजर रहा है, यह देख कर आश्चर्य होता है कि कुछ लोग परिवर्तन का विरोध कर रहे हैं। दोनों दो अलग-अलग संप्रदाय के हैं। एक कहता है, बाकी सब परिवर्तन ठीक है, लेकिन धर्म का परिवर्तन नहीं चलेगा। हिंदू को जीवन भर हिंदू बने रहने का अधिकार ही नहीं, यह उसका कर्तव्य भी है। इसलिए हिंदुओं के धर्मांतरण पर कानूनी रोक लगाई जानी चाहिए। दूसरे संप्रदाय का कहना है कि हिंदू मुसलमान हो जाए या ईसाई हो जाए, इसमें कुछ हर्ज नहीं है, पर मुसलमान या ईसाई को हिंदू नहीं बनने देंगे। दोनों ही संप्रदाय धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे हैं- बस नजरिया अलग-अलग है।
मेरे खयाल से, दोनों ही नेकी के रास्ते से भटके हुए हैं। वे धर्म परिवर्तन के महत्त्व को नहीं समझ रहे हैं। इसका मतलब यह है कि दोनों को ही धर्म के बारे में कुछ नहीं मालूम। मालूम होता, तो वे परिवर्तन की इस लहर का स्वागत करते। धर्म परिवर्तन का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि इससे हमारे जड़ समाज में गति आ जाएगी। जब तक बाबरी मस्जिद थी, दोनों धर्मों के लोगों में कितनी उत्तेजना थी, कितनी गतिशीलता थी! दोनों के पास सवाल थे और दोनों के पास जवाब थे। लगता था, भारत में कोई बड़ी क्रांति होने वाली है। क्रांति तो हुई, मगर उलटी। मस्जिद को गिरा दिया गया। यह एक बड़े मुद्दे की मौत थी। उसके बाद कोई और बड़ा मुद्दा आना चाहिए था।
लंबे इंतजार के बाद, धर्म परिवर्तन का मुद्दा सामने आया है। इसकी वजह से संसद में गरमी है और समाज में भी। अखबार वालों को रोज कई खबरें मिल जाती हैं- भले ही वे एक ही खबर हों और उन्हें दुहराया-तिहराया जा रहा हो। टीवी वालों के चेहरे पर भी रंगत लौट आई है। चोंच लड़वाने के लिए एक नया विषय मिल गया है। धर्म परिवर्तन का मुद्दा जारी रहा, तो मुझे आशा है, देश भर में अभूतपूर्व जागृति आएगी!
धर्म परिवर्तन से एक और फायदा यह होगा कि धर्म की असलियत सामने आ जाएगी। लोग सोचते हैं कि धर्म का निवास आत्मा में होता है। गलत। धर्म का संबंध आत्मा से है, तो धर्म परिवर्तन कैसे हो सकता है? आप किसी का धर्म बदल सकते हैं, पर उसकी आत्मा को कैसे बदल सकते हैं? हिंदू आत्मा में इस्लाम और मुसलिम आत्मा में हिंदू धर्म कैसे समा सकता है? धर्म आत्मा की देह पर कोट की तरह है। कोट को बदला जा सकता है, पर आत्मा को नहीं। वह परमात्मा का अंश है।
धर्म परिवर्तन से भारतीय समाज की एक बड़ी समस्या हल हो जाएगी। कई राज्यों में पढ़े-लिखे लोगों को बेकारी भत्ता दिया जा रहा है, पर उसकी राशि इतनी कम है कि उससे महीने भर तक न चाय पी जा सकती है, न गुटका खाया जा सकता है। धर्म परिवर्तन इस स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन ले आएगा। जिसे भी पैसे की तंगी होगी, वह जाकर धर्म बदल लेगा। वह धमकी भी दे सकता है कि जैसे ही मेरा पैसा बंद होगा, मैं दूसरा धर्म स्वीकार कर लूंगा। वे आपसे ज्यादा ही देंगे, कम नहीं। चूंकि ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जा सकता कि कोई आदमी जीवन भर में कितनी बार धर्म बदल सकता है, इसलिए लोग आर्थिक कारणों से जब जरूरत होगी, धर्म परिवर्तन कर सकेंगे। इससे हमारी अर्थव्यवस्था में भी गतिशीलता आएगी।
आंखों के आगे बड़ा सुंदर दृश्य उभरता है। एक दुबला-पतला युवक। उसके पास कोई रोजगार नहीं है। अचानक उसके दरवाजे पर एक आचार्यजी पहुंच जाते हैं। खबर फैलते ही मौलवी साहब भी आ धमकते हैं। युवक चुप है। वह अपना मोल-भाव देख रहा है। मौलवी साहब रोजगार का लालच देते हैं। आचार्यजी उससे बड़े रोजगार का लालच देते हैं। मौलवी साहब कुछ नगद भी देने का आश्वासन देते हैं। आचार्यजी ललकारते हैं- अगर तुम घर में ही रह जाओ, तो हम इसका दुगना देंगे। मौलवी शादी करा देने का वादा करते हैं। आचार्यजी उसकी ओर घूर कर देखते हैं, उसके बाद युवक से कहते हैं- बेटा, सावधान रहना। पता नहीं किसका हाथ तुम्हारे हाथ में रख दें। एक बार जाति चली गई तो घर वापसी बहुत मुश्किल होगी। युवक अपने दोनों खरीदारों को देख रहा है और अपने महत्त्व पर गर्वित हो रहा है!
धर्म परिवर्तन का नकारात्मक पहलू सिर्फ एक है। इससे पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं को कोई फायदा नहीं होगा। धर्म परिवर्तन का मतलब यह नहीं है कि धार्मिक पुस्तकों की बिक्री बढ़ जाएगी। दरअसल, धर्म का कुरआन, गीता या बाइबिल से कुछ भी लेना-देना नहीं है। अनपढ़ आदमी भी अपना धर्म बदल सकता है। कोई भी धर्मदाता इस बहस में नहीं पड़ता कि धर्म क्या है। उसे इससे ज्यादा जानने की जरूरत नहीं कि धर्म किसकी जेब में है।
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