हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक नया वीनस या शुक्र ग्रह खोजा है। यह हमारी धरती से उनतालीस प्रकाश वर्ष दूर है। विज्ञान की शब्दावली में यह दूरी बहुत कम है। वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि हालांकि वे दूसरी पृथ्वी को ढूंढ़ रहे थे, मगर मिल गया शुक्र। वीनस नाम की एक रोमन देवी भी है, जो खूबसूरती के लिए जानी जाती है। यों शुक्र को खूबसूरती और भौतिक सुख-सुविधाओं का प्रतीक भी माना जाता है। लेकिन अगर शुक्र ग्रह के बारे में जानें और वैज्ञानिक खोजों पर नजर डालें तो वहां के वातावरण में खूबसूरती जैसा कुछ नहीं है, सिवाय तेजाब और ऊंची चोटियों के।
खैर, विज्ञान वैसे भी हर वक्त किसी नई चीज की खोज में रहता है, आविष्कार करता है। इसी तरह खगोल विज्ञान विस्तृत आकाशगंगा में हर रोज किसी नए तारे की खोज करता है। जितनी ये खोजें होती हैं, उतना ही अंतरिक्ष के अनंत होने और अपने छोटे होने का अहसास गहराता जाता है। पहले लोग तारों को जानते-पहचानते थे। मगर अब आम लोगों की स्मृति में तारे जैसे कहीं लुप्त हो गए हैं या होते जा रहे हैं।
बचपन में जब मां के साथ खुले आंगन में सोती थी तो वह तारों की पहचान कराती थी कि देखो, वह जो हलका नीला दिख रहा है, वह शुक्र है। जिसमें हलकी-सी लाली है, वह मंगल है और वह जो रात में सूरज-सा चमक रहा है, वह बृहस्पति है… देवताओं का गुरु। सप्तऋषि मंडल और आकाशगंगा के बारे में भी बताती थी। ध्रुवतारे की तरफ इशारा करते हुए मां ने कहा था- ‘इसे ध्रुवतारा कहते हैं। यह भूले-भटकों को रास्ता दिखाता है। समुद्र में नाविक इसी को देख कर अपनी दिशा तय करते हैं।’ तब बालक ध्रुव की कथा भी उसने सुनाई थी। वह बालक अपने निश्चय का कितना पक्का था, यह तो बताया ही था। साथ में यह नसीहत भी दे डाली थी कि तुम्हें भी उस जैसा ही बनना चाहिए। उन्हीं दिनों बालक ध्रुव पर एक फिल्म भी आई थी, जिसे मां दिखाने ले गई थी। तब मेरे लिए सब कुछ कौतूहल का विषय था और यह सब सुन-जान कर मैं रोमांचित होती रहती थी। लेकिन आज मेरी सोच का वह दायरा बदल चुका है और उसमें कई तरह के सवाल शामिल हो गए हैं।
आज सोचती हूं, आखिर इस तारे का नाम ध्रुव क्या उसी तरह रखा गया होगा जिस प्रकार आज रखे जाते हैं! अंतरिक्ष एजेंसियां अपने-अपने हिसाब से तारों का नामकरण करती हैं। पुराने जमाने में लोग इस तारे को देख कर रास्ता पहचानते थे। पहचान का यह तरीका किस तरह से विकसित हुआ होगा कि सब इसे जानने लगे। आज रास्ता बताने के लिए जीपीएस है। तो क्या जीपीएस के युग में ध्रुवतारे की जरूरत खत्म हो गई? जैसे ही किसी चीज की जरूरत खत्म होती है, हम उन चीजों को, तौर-तरीकों और परंपराओं को भूलने लगते हैं। तो क्या हम ध्रुवतारे को भी भूल जाएंगे? क्या शहरों-महानगरों की बड़ी-बड़ी इमारतों और उनके फ्लैटों के अंदर सोते बच्चे तारों को पहचानते हैं? या कि इसके लिए उन्हें तारामंडलों में जाने की जरूरत होती है या फिर किसी फिल्म और वीडियो को देखने की? हम आगे बढ़ते हैं तो क्या पीछे का अर्जित सारा ज्ञान निरर्थक हो जाता है?
तारे रात में दिखते हैं, इसलिए उनका संबंध शीतलता और शुभ कार्यों से भी जोड़ लिया गया है। आज भी शादी के बहुत-से निमंत्रण कार्डों पर यह लिखा मिलता है- ‘बेटी की विदाई-तारों की छांव में।’ यही नहीं, बहुत-से घरों में नई बहू के आगमन का स्वागत भी तारों की छांव में किया जाता है। जब तारे हमारे जीवन में इतने महत्त्वपूर्ण हैं तो हम उन्हें भुला क्यों दें! प्रकृति में हर डोर हर एक से बंधी हुई है।
तारे हैं, तो हम भी हैं, यह धरती भी है। दूसरी धरती की खोज हो जाए, अच्छा है। मगर अभी अपनी इस धरती पर ही बहुत कुछ होना बाकी है। इसके अलावा, मुनष्य ने अपनी इस धरती को नष्ट करने के भी बहुत-से इंतजाम किए हैं। दुनिया भर में हथियारों के इतने जखीरे हैं कि पूरी पृथ्वी को कई-कई बार नष्ट किया जा सकता है। क्या दूसरी धरती खोज कर मनुष्य उसके साथ भी इतना ही बुरा व्यवहार करेगा? अगर हां, तो अच्छा ही है कि दूसरी धरती कभी न मिले। सिर्फ हम नहीं, आसमान में दिपदिपाते सूरज-चांद और टिमटिमाते तारे भी यही चाहते होंगे।