उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कड़क छवि से हर कोई परिचित है। आज के समय में योगी सरकार अपने कामों के अलावा बुलडोजर के चलते भी चर्चा में बनी हुई है। लेकिन साल 2008 में एक ऐसा भी वाकया योगी आदित्यनाथ के साथ घटा था, जिसमें उन पर आजमगढ़ के पास जानलेवा हमला हुआ था। इस घातक हमले में योगी आदित्यनाथ बाल-बाल बच गए थे।

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टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार प्रवीण कुमार द्वारा लिखित किताब ‘योगी आदित्यनाथ: द राइज ऑफ अ सैफ्रन सोशलिस्ट’ में इस हमले का जिक्र किया गया है। किताब के मुताबिक, विपक्षी नेता साल 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट में कथित संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किए गए अबू बशीर के घर का लगातार दौरा कर रहे थे। इसी क्रम में योगी आजमगढ़ में विरोधी पार्टियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एक आतंक-विरोधी रैली को संबोधित करने जा रहे थे।

आजमगढ़ में थी रैली: किताब में बताया गया है कि “हिंदू युवा वाहिनी के नेतृत्व में कई हिंदूवादी संगठनों ने घोषणा की थी कि वे आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ रैली करेंगे। योगी, 7 सितंबर को डीएवी मैदान में होने वाली रैली में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होने वाले थे। साल 2008 में 7 सितंबर को सुबह गोरखनाथ मंदिर से 40 वाहनों का एक काफिला आजमगढ़ के लिए निकल पड़ा।

हमले की थी आशंका: इस दौरे से पहले ही हमले के बारे में आशंका जताई गई थी इसलिए सुरक्षा के इंतजामात पूरे थे। इस काफिले में, योगी की लाल एसयूवी सातवें नंबर पर थी। काफिले में सैकड़ों चार पहिया वाहन और मोटरसाइकिल थी और पीएसी की गाड़ी भी काफिले में शामिल थी। योगी आदित्यनाथ का काफिला तेजी से आजमगढ़ के डीएवी मैदान में होने वाली रैली की ओर बढ़ता जा रहा था।

जब हुआ हमला: योगी आदित्यनाथ का काफिला आजमगढ़ के बाहरी इलाके में पहुंचा ही था कि दोपहर 1:20 बजे काफिले के सातवें वाहन में एक पत्थर टकराया। कुछ पल में ही चारों तरफ से ताबड़तोड़ पत्थर बरसने लगे। पत्थरबाजी के बाद एक सुनियोजित साजिश के तहत काफिले पर पेट्रोल बम फेंका गया। समर्थकों में हड़कंप मचने के बाद काफिला तीन हिस्सों में बंट गया और करीब आधा दर्जन वाहन आगे निकल गए। हालांकि, जो बीच में फंसे वही हमले का शिकार हुए।

जब हल्ला हुआ कि ‘योगी कहां हैं’: किताब के मुताबिक, हमलावरों ने काफिले के वाहनों को घेर लिया और हमला करने लगे। हमलावरों का निशाना योगी आदित्यनाथ थे, लेकिन वह उन्हें ढूंढ नहीं पाए। काफी तलाश के बाद जब योगी नहीं मिले तो वे और वे उग्र हो गए। हमला थमा तो समर्थकों के बीच बस यही सवाल था कि आखिर योगी कहां हैं?

जवाबी एक्शन में एक की मौत: जब योगी के काफिले पर हमले की सूचना मिली तो कई थानों की पुलिस मौके पर जा पहुंची। आसपास रहने वाले लोगों ने भी गाड़ियों के आसपास सुरक्षा घेरा बना लिया। घटना में शहर के तत्कालीन सर्कल अधिकारी शैलेंद्र श्रीवास्तव ने जवाबी कार्रवाई का आदेश दिया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। काफिले में सवार घायलों को अस्पताल ले जाया गया। लेकिन अभी तक योगी का कोई पता नहीं चला था।

योगी ने दे दिया था चकमा: जब योगी नहीं दिखे तो खोजबीन के बाद पता चला कि वह काफिले की सातवीं गाड़ी में थे ही नहीं। योगी को काफिले की पहली गाड़ी में शिफ्ट कर दिया गया था और यह तब हुआ जब काफिला चाय-नाश्ते के लिए कुछ देर के लिए पीडब्ल्यूडी के गेस्ट हाउस में रुका था। योगी और प्रशासन हमलावरों को चकमा देने में सफल इसलिए हो गए क्योंकि आखिरी समय पर हुए इस बदलाव की जानकारी उन्हें (हमलावरों) नहीं थी।