आज बात भारत के ऐसे जासूस की जो पाकिस्तान में रहकर उसके परमाणु कार्यक्रम की जानकारी इकट्ठा कर रहा था। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ से जुड़े इस जासूस का नाम मोहनलाल भास्कर था। मोहनलाल एक दूसरे डबल एजेंट की गद्दारी के चलते पकड़ लिए गए थे और फिर उन्हें साल 1968 में लाहौर की कोट लखपत जेल में भेज दिया गया था। मोहनलाल भास्कर इस जेल में साल 1971 तक रहे थे।

मोहनलाल भास्कर, साल 1967 से पाकिस्तान में भारत के लिए जासूसी को अंजाम दे रहे थे। लेकिन साल 1968 में पाकिस्तान में भास्कर को तब गिरफ्तार किया था, जब वह एक काउंटर-इंटेलीजेंस ऑपरेशन से जुड़े थे। भास्कर के साथ एक डबल एजेंट ने गद्दारी की थी, जो भारत व पकिस्तान दोनों के लिए जासूसी कर रहा था। इस डबल एजेंट का नाम अमरीक सिंह था। दरअसल, पाकिस्तान में बिताए अपने पूरे सफर को भास्कर ने एक किताब की शक्ल में उतारा था, जिसका नाम ‘एन इंडियन स्‍पाई इन पाकिस्‍तान’ था।

मोहनलाल भास्कर की यह किताब साल 1983 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्होंने अपने जासूसी जीवन से जुड़ी घटना को बेबाकी से लिखा था। भास्कर ने इस किताब में बताया था कि वह पाकिस्तान में मोहम्‍मद असलम के नाम से रह रहे थे। भास्कर ने खुद को पाकिस्तान के लोगों के बीच ढालने के लिए रहन-सहन बिल्कुल वैसा ही कर लिया था। लेकिन भास्कर को पाकिस्‍तान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी इकट्ठा करनी थी।

हालांकि, जब भास्कर पर जासूसी के आरोप लगाकर उन्हें जेल भेजा गया तो उन्हें बहत बुरी तरह प्रताड़ित किया गया था। जेल में कैदियों को दी जाने वाली यातनाओं के बारे में भी भास्कर ने कई बातें साझा की हैं। उन्होंने दावा किया था कि उनकी कोट लखपत जेल में पाकिस्‍तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से भी हुई थी। भास्कर ने यह भी बताया था कि साल 1971 के दौरान जब उन्हें मियांवाली जेल में भेजा गया तो वह शेख मुजीब उर रहमान से भी मिले थे।

बता दें कि, शेख मुजीब उर रहमान को ही बांग्लादेश का संस्थापक माना जाता है। इसके अलावा वह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे। मुजीब उर रहमान को भी साल 1971 की जंग के दौरान पाकिस्‍तान की मियांवाली जेल में ही रखा गया था। हालांकि, 1972 में भारत-पाकिस्‍तान के बीच शिमला समझौते के चलते पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन पीएम ने पाक की जेल में बंद भारतीय कैदियों को रिहा करने पर रजामंदी जताई थी, इनमें मोहनलाल भास्कर भी शामिल थे। फिर वह 9 दिसंबर, 1974 को भारत लौट आए थे।