हरियाणा का एक जिला है सोनीपत। यहां एक गांव है गनौर। इस गांव का एक लड़का जब रिंग में उतरकर पंच मारता था तो अच्छे-अच्छे सूरमा ढेर हो जाते थे। दीपक पहल नाम का यह लड़का उन दिनों शर्मिला स्वभाव का हुआ करता था और उसकी जिंदगी स्टेडियम कॉम्प्लेक्स, जीम और हॉस्टल के ईर्द-गिर्द ही घूम रही थी। दीपक पहल ने महज 15 साल की उम्र में बॉक्सिंग शुरू की। प्रतिभा के धनी दीपक पहल अगले कुछ ही सालों में 57 किलोग्राम में जूनियर नेशनल चैंपियन बन गए। दीपक के कोच को उनमें अद्भुत प्रतिभा नजर आती थी। पर वक्त का तकाजा आज यह है कि दीपक के साथ खेलने वाले खिलाड़ी ओलंपिक तक पहुंचे और दीपक बन गया दिल्ली का मोस्ट वांटेड क्रिमिनल।

जब एक बार दीपक ने गोल्ड मेडल जीता था तब उनके गांव में खुशी का माहौल था और आज दीपक का नाम गांव में खौफ के साए में लिया जाता है। सोनीपत के साईं केंद्र में दीपक की एक साथी खिलाड़ी से बहस हो गई थी और उसने साथी खिलाड़ी के मुंह पर एक जोरदार पंच जड़ दिया था। यहां पहली बार उसके गुस्से की चर्चा गांव में फैली थी। जब साल 2012 में भारत की बॉक्सिंग फेडरेशन पर बैन लगा था तब कई खिलाड़ी अपने लक्ष्य से भटक गए थे और दीपक भी उनमें से एक था। जल्दी ही दीपक पहल की मुलाकात कुख्यात गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी से हुई थी।

दीपक को गोगी का साथ पसंद आय़ा और वो उसके गैंग में काम करने लगा। साल 2016 में जब गोगी जेल से फरार हुआ था तब उसे फरार करवाने वालों में दीपक का नाम भी सामने आया था। इस मामले में वो गिरफ्तार भी हुआ लेकिन उसे बेल मिल गई। इसके बाद दीपक ने सबसे पहला काम किया कि उसने अपना घरबार छोड़ दिया। घर छोड़ने के बाद दीपक उस वक्त चर्चा में आया जब उसपर चार लोगों की हत्या का केस दर्ज किया गया था।

पुलिस अक्सर परिवार के लोगों से दीपक के बारे में पूछती थी लिहाजा परिजनों ने अखबार में इश्तिहार देकर ऐलान कर दिया कि उन्होंने दीपक से सारे संबंध तोड़ लिये हैं। बता दें कि मंडोली जेल से चेकअप के लिए जीटीबी अस्पताल लाए गए फज्जा को गोगी और काला जठेड़ी गैंग के बदमाश 25 मार्च को पुलिस कस्टडी से ले उड़े थे। स्पेशल सेल ने 72 घंटे के भीतर फज्जा को रोहिणी के एक अपार्टमेंट में ढेर कर दिया था।

दीपक के बारे में बताया जाता है कि साल 2008 के नवंबर में उसने खुद को एक बॉक्सर के तौर पर रजिस्टर कराया था। यह वो समय था जब बीजिंग ओलंपिक्स में विजेंद्र सिंह के ब्रॉन्ज मेडल जीतने का देश में डंका बज रहा था। हालांकि दीपक का परिवार चाहता था कि वो अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाए पर दीपक ने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर बॉक्सिंग को करियर चुना था।