जब देश आजाद हुआ और कुछ सालों बाद जब पहले आम चुनावों की तैयारियां चल रही थीं तब उस वक्त सौराष्ट्र में एक बड़े खेल को अंजाम देने की तैयारी भी चल रही थी। इस खेल के केंद्र में था खूंखार डकैत भूपत सिंह। भूपत सिंह हत्या, डकैती, लूट और अन्य जघन्य अपराधों के लिए उस वक्त काफी मशहूर हुआ करता था। साल 1950 में नए भारत में नई आशाएं और उम्मीदें हिलोरें ले रही थीं। उस वक्त कई राजघराने भी भारत में शामिल किए जा रहे थे। उस वक्त देश के कई अमीर घराने देश की राजनीतिक अनिश्चितता को लेकर संशय में थे। यह सभी रजवाड़े नए लोकतांत्रिक भारत में अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे। कहा जाता है कि जब भारत में पहले आम चुनाव होने थे उस वक्त इन राजघरानों ने एक बड़ी साजिश रची थी। इस साजिश में शामिल था भारत में होने वाले चुनाव को प्रभावित करना।
साल 1950-52 के बीच डाकू भूपत सिंह अपने खूंखार कारनामों को लेकर काफी चर्चित हुआ था। उसके अत्याचारों पर उस वक्त वेस्टर्न मीडिया की भी नजरें होती थी। साल 1952 के मई महीने में ‘The New Yorker’ ने लिखा कि आम चुनावों से कई हफ्ते पहले तक भूपत सिंह के कारनाामों की खूब चर्चा होती थी। उस वक्त भूपत सिंह कई राजाओं की योजनाओं को लागू करवाने का काम भी करता था। ‘The New Yorker’ ने लिखा था कि वो भूपत सिंह से कहा करते थे कि जिन इलाकों में उनका दबदबा खत्म हो गया है वहां वो आतंक फैलाए। इसके पीछे योजना यह थी कि राजा उन इलाके के लोगों को दिखाना चाहते थे कि भारत में राजा और रानी की परंपरा चली आ रही है यहां लोकतंत्र की जरुरत नहीं है। आतंक फैलाने का मकसद यह होता था कि वो गांव वालों को इस बात के लिए राजी कर सकें कि लोकतंत्र की वजह से ही कानून व्यवस्था चरमराई और अगर कांग्रेस ताकत में आई तो ऐसा होता रहेगा।
उस वक्त कांग्रेस पार्टी देश की सियासत के केंद्र में थी। यह पार्टी देश में भूमि सुधार और शाही खर्चे में कटौती के प्रयास में जुटी हुई थी। राजाओं से उनकी राजशाही वापस ली जा रही थी और उनसे उनकी निजी संपत्ति भी वापस करने के लिए कहा गया था। कुछ राजा इस राह पर काम कर रहे थे लेकिन कुछ इसके लिए तैयार नहीं थे। कई अखबारों ने इस बात का जिक्र किया है कि उस वक्त कुछ राजा भूपत सिंह और उसके साथियों को हथियार और अन्य सामानों की मदद पहुंचाया करते थे ताकि वो अशांति फैला सकें। कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताते हैं कि कई राजा, भूपत सिंह की मदद से स्थानीय पुलिस को अपना काम करने से भी रोकते थे। यह भी अफवाह थी कि कुछ पुलिस वाले भी भूपत सिंह की मदद किया करते थे। भूपत सिंह का आतंक इतना बढ़ गया था कि सरकार उससे आजिज आ चुकी थी और अंत में सरकार ने उसके जिंदा या मुर्दा पकड़े जाने पर 50 हजार रुपया का इनाम रख दिया।
भूपत के बारे में यह चर्चा थी कि वो वो अमीरों को लूटता था और यह पैसे गरीबों में बांट जेता था। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक भूपत ज्यादातर स्थानीय धनी व्यक्तियों या शहर में रहने वाले अमीरों को अपना निशाना बनाता था। वो अचानक आता और डकैती को अंजाम देकर फरार हो जाता। कहा जाता है कि उसने करीब 100 लोगों की हत्या की है हालांकि अलग-अलग रिपोर्ट में इस संख्या को लेकर अलग-अलग बातें भी कही गई हैं। इन राजाओं पर आरोप थे कि वो इस नामी डकैत को पैसे देते थे ताकि वो लोगों को लूटे नहीं बल्कि उनकी हत्या करने पर ज्यादा ध्यान दे…खासकर राजनीतिक विरोधियों का कत्ल। हालांकि चुनाव को प्रभावित करने की यह कोशिश ज्यादा सफल नहीं हो सकी। सौराष्ट्र के लोग चुनाव में कांग्रेस के साथ गए। पार्टी को सभी संसदीय सीट पर जीत हासिल हुई तथा करीब 90 फीसदी असेंबली सीट भी कांग्रेस के खाते में गई।
मराठी में लिखे गए एक किताब में एक मशहूर पुलिस अफसर वीजी कानिटकर ने भूपत सिंह के बारे में लिखा कि इनाम घोषित होने के बाद कई दिनों तक यह डाकू पुलिस अधिकारियों के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलता रहा। रिपोर्ट्स बताते हैं कि जब भूपत सिंह के सबसे भरोसेमंद साथी को पुलिस ने मार गिराया तब वो पाकिस्तान भाग गया। कानिटकर की किताब के मुताबिक उसने पाकिस्तान में इस्लाम धर्म अपना लिया और वहां नाम बदलकर रहने लगा। इतना ही नहीं उसने यहां निकाह भी कर लिया।
एक भारतीय पत्रकार ने बाद में दावा किया था कि पाकिस्तान में उसकी मुलाकात भूपत सिंह से हुई थी। अवैध रुप से बॉर्डर पार करने के आरोप में वो गिरफ्तार भी हुआ था और उसे वहां जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी थी। एक ब्लॉग पोस्ट से पता चला था कि जेल से छूटने के बाद वो करांची की बाजार में दूध का व्यापारी बन गया। हालांकि भारत ने कई बार कोशिश की इस डकैत को पकड़ने की लेकिन तमाम राजनयिक कोशिशों के बावजूद उसका प्रत्यर्पण कभी हो सका। (और…CRIME NEWS)
