दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश की पहचान वाले अमेरिका ने भी कई बड़े संकट झेले हैं। इनमें से कुछ ऐसे थे जिनकी कल्पना उसने कभी नहीं की थी। 7 दिसंबर 1941 को पर्ल हार्बर नेवल बेस पर जापान द्वारा किया गया हमला भी कुछ ऐसा ही था। पर्ल हार्बर पर हुए इस हमले ने अमेरिका को चौंका कर रख दिया था लेकिन इसी एक कदम ने द्वितीय विश्व युद्ध का रुख भी मोड़ दिया था।

अमेरिका में पर्ल हार्बर के नेवल बेस में 7 दिसंबर 1941 की सुबह धुंध से भरी थी और साढ़े सात बजे जोरदार धमाका हुआ। इसके बाद ऐसी ही बमबारी लगभग 1 घंटे तक जारी रही। द्वितीय विश्व युद्ध के दौर में यह पहला हमला था जो अमेरिकी जमीन पर किया गया था। वहीं, अमेरिका को भी जापान की तरफ इस हमले की कोई संभावना नहीं थी।

जापान ने अमेरिका के नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर को इसलिए चुना था, क्योंकि उसे लगता था कि अमेरिका के अधिकतर ईंधन टैंक और जंगी जहाज यहां मौजूद होंगे। हालांकि, इस हमले में सभी विमान, टैंक व जहाज पर्ल हार्बर पर नहीं थे लेकिन अमेरिका को भारी क्षति हुई थी। नौसैनिक अड्डे के साथ-साथ पूरा बंदरगाह इस भीषण बमबारी में तबाह हो गया था।

पर्ल हार्बर के इस हमले में करीब 2400 अमेरिकी मारे गए थे, जिनमें जवान व नागरिक दोनों शामिल थे। साथ ही नौसेना, वायुसेना से जुड़े 200 से अधिक अमेरिकी विमान और कई सारे युद्धपोत व समुद्री जहाज भी तबाह हो गए थे। वहीं, जापान के भी करीब 100 सैनिक इस हमले में मारे गए थे। यह वही हमला था जिसके बाद अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र सेनाओं की तरफ से शामिल हो गया था।

अमेरिका को जापान की तरफ इस हमले की कोई कल्पना नहीं थी। इसका कारण यह था कुछ दिन पहले ही जापान के प्रतिनिधियों के साथ अमेरिकी विदेश मंत्री ने प्रतिबंधों को हटाने को लेकर बैठक की थी। दरअसल, अमेरिका ने चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के चलते जापान पर प्रतिबंध लगा दिए थे। वहीं जापान तब अमेरिका से नाराज हो गया था, जब उसने और मित्र सेना ने चीन को मदद दी थी।

पर्ल हार्बर पर हमले के बाद ही अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने का एलान कर दिया था। जिसके बाद ब्रिटेन को अमेरिका का खूब सहयोग मिला और यूरोप की स्थिति पर ख़ासा प्रभाव पड़ा था। वहीं, साल 1945 में अमेरिका ने पर्ल हार्बर के हमला का बदला लेने के लिए ही जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया था। जिस दंश को जापान कई दशकों से झेलता चला आ रहा है।