कभी वो पैरों में घुंघरू बांध कर ऊंचे लोगों की महफिल रोशन किया करती थी तो कभी अपनी सुरीली आवाज में कव्वाली या फिर कोई ग़ज़ल गाकर लोगों का दिल बहलाती थी। लेकिन कहते है वक्त जब करवट लेता है तो हालात इंसान से वो सब कुछ करवाता है जिसके बारे में शायद उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। महफिलें रोशन करने वाली गौहरबानो की जिंदगी में वक्त ने कुछ ऐसी करवट ली कि वो बन गई चंबल की पहली खूंखार बैंडिट क्वीन। अब पांव में घूंघरू की जगह थे बंदूक और सुरमयी शाम के बजाए थी खौफनाक चीखें और बीहडों की काली-अंधेरी रात। आज हम बात करेंगे चंबल के बीहड़ों की पहली महिला डाकू पुतलीबाई की। साल 1926 में पुतलीबाई का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के एक मशहूर गांव बरबई में हुआ था। बरबई प्रसिद्ध इसलिए हुआ क्योंकि इसी मिट्टी में जन्मे थे महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल।
लेकिन आजादी की लड़ाई के इस परवाने के जन्म से पहले भी यह गांव काफी मशहूर था और वजह थी गौहरबानो। बचपन से ही नाचने-गाने की शौकिन गौहरबानो के परिवार में मां असगरी और पिता नन्हें खां के अलावा उनके बड़े भाई अलादीन और छोटी बहन तारा भी थी। भाई अलादीन के तबले की थाप पर गौहरबानो ने नाचना सीखा और जल्दी ही वो पूरे मुरैना की शान बन गई। लोग दूर-दूर से गौहरबानो को सुनने और उनकी महफिल देखने आया करते थे। जल्दी ही गौहरबानो की महफिल के चर्चे कानपुर, लखनऊ और आगरा में होने लगे। एक वक्त ऐसा था जब आगरा के आशिक मिजाजों की महफिल ने पुतली की जिंदगी में ग्लैमर भर दिया। पुतलिबाई के कार्यक्रम में लोग पैसों की बारिश करते थे।
लेकिन जल्दी ही यह शोहरत पुतलीबाई को चंबल के बीहड़ो में ले गई। उस वक्त धौलपुर से सटे बीहड़ों में सुल्ताना डाकू का आतंक था। कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू महिलाओं की इज्जत करता था और उसने कभी किसी भी महिला की इज्जत पर हाथ नहीं डाला था। सुल्ताना को पुतलीबाई से मोहब्बत हो गया। पुतलीबाई की उम्र उस वक्त 25 साल रही होगी जब एक शादी-विवाह में नाच-गाकर लोगों का दिल बहलाते वक्त अचानक वहां सुल्ताना अपनी गैंग के साथ आ धमका। कहा जाता है कि सुल्ताना को देख कर पुतलीबाई जरा भी घबराई नहीं थी। पुतलीबाई ने सुल्ताना से बेधड़क पूछा कौन है तू…? तो आवाज आई तुम्हारा चाहने वाले। बीहड़ में आज भी इस किस्से को चटकारे लेकर सुना जाता है।
हालांकि पुतलीबाई को उस वक्त शायद ही अंदाजा रहा होगा कि सुल्ताना से उनकी यह पहली मुलाकात उन्हें बीहड़ की मल्लिका बनाने वाला है। सुल्ताना ने उसी वक्त पुतलीबाई को अपने साथ चलने को कहा। लेकिन पुतलीबाई ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद सुल्ताना डाकू ने पुतलीबाई के भाई के सीने पर बंदूक रखी और कहा कि अगर वो उसके साथ नहीं गई तो वो अलादीन का कत्ल कर देगा। भाई को बचाने की खातिर पहले पुतलीबाई ने सुल्ताना के हाथ जोड़े और फिर आखिरकार वो उसके साथ चलने के लिए राजी हो गई। एक डाकू की मोहब्बत पुतलीबाई को बीहड़ में खींच ले गई। कहते हैं कि इस बीहड़ में एक डाकू की मोहब्बत बनकर उतरी पुतलीबाई जल्दी ही सुल्ताना के प्यार के आगे भी हार गई।
उसने चंबल की पहाड़ियों में ही सुल्ताना की मोहब्बत को कबूल किया। लेकिन सुल्ताना के लूटपाट और कत्ल-ए-आम की आदतों को देख पुतलीबाई घबरा गई। वो वापस अपने गांव चली आई। पर गांव आते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया और थाने में टॉर्चर कर उससे सुल्ताना के राज उगलवाने की कोशिश की। पुतलीबाई पुलिसवालों के सामने टूटी नहीं। जल्दी ही पुलिस के डर से वो दोबारा सुल्ताना के पास चली गई। उस वक्त सुल्ताना ने अपनी गैंग बढ़ाने की खातिर चंबल के ही एक और डाकू लाखन सिंह से हाथ मिला लिया। हालांकि पुतलीबाई यह समझ गई थी कि लाखन के इरादे सही नहीं है। 25 मई 1955 को पुलिस ने सुल्तान गैंग को घेर लिया। मुठभेड़ के दौरान लाखन के इशारे पर सुल्ताना गैंग के ही कल्ला डकैत ने सुल्ताना पर ही गोली डाल दी। सुल्ताना मारा गया और यहां से पुतली की जिंदगी खाक में तब्दील हो गई।
इस दौरान पुतलीबाई को एक बेटी भी हुई। एक दिन बेटी से मिलने की चाह में वो धौलपुर के रजई गांव गई थी। जहां पुलिस से मुठभेड़ में उसे सरेंडर करना पड़ा। पुतलीबाई को आगरा ले जाया गया और फिर वो जमानत पर बाहर निकली। इस बार फिर वो पुलिस की नजरों से बचकर फरार हो गई। कुछ ही दिनों बाद गैंग के अंदर ही हुए एक मुठभेड़ में पुतलीबाई ने कल्ला डकैत को ढेर कर अपना पहला बदला ले लिया। पुतलीबाई अब गैंग की लीडर बन गई। अब उसके हाथों में बंदूक था। धीरे-धीरे पुतलीबाई ने लूटपाट और डकैती की वारदातों को इतने खूंखार तरीके से अंजाम देना शुरू किया कि हर कोई उससे खौफ खाने लगा।
कहा जाता है कि पुतलीबाई जिस घर में डाका डालती वो उस घर के सदस्यों को मार देती थी। इतना ही नहीं कानों की बालियां हासिल करने के लिए वो महिलाओं के कान तक उखाड़ देती थी। सुल्ताना ने दिसंबर 1957 में कई कत्ल और लूट को अंजाम दिया। कई मुठभेड़ में वो बच निकली। हालांकि एक मुठभेड़ में पुतलीबाई को हाथों में गोली लग गई और उसने अपना एक हाथ हमेशा के लिए खो दिया। इसके बाद पुतली एक हाथ से सटीक निशाना लगाने वाली डाकू के नाम से मशहूर हो गई।
यह भी कहा जाता है कि इससे पहले नवंबर 1956 में पुतलीबाई ने तत्तकालीन प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू को एक खत लिखा और बताया था कि सुल्ताना को पुलिस की गोलियों ने नहीं गैंग की गोलियों ने मारा है। हालांकि पुलिस इसका खंडन करती रही। पुतली ने सरेंडर के लिए भी खत लिखा था। लेकिन उसका कोई जवाब नहीं आया। 23 जनवरी 1958 के दिन पुलिस की एक टुकड़ी मुरैना के कोथर गांव में लाखन गैंग से मुठभेड़ करने की तैयारी में थी। थोड़ी देर बाद डकैतों के वहां पहुंचते ही मुठभेड़ शुरू हुआ। जल्दी ही पुलिस को यह पता चला कि यह गैंग लाखन का नहीं बल्कि पुतलीबाई का है। इसी मुठभेड़ में 32 साल की पुतलीबाई पुलिस की गोलियों से मारी गई। महज 32 साल की जिंदगी में पुतलीबाई ने ग्लैमर, और बीहड़ की अंधेरी रातों को करीब से देखा।

