आज कहानी साल 1979 में हुई एक ऐसी घटना की, जिसने पूरी दुनिया को सन्न कर दिया था। दरअसल, 20 नवंबर 1979 को इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल 1400 का पहला दिन था, तभी सैकड़ों हथियारबंद लोगों ने धावा बोलकर मक्का में लाखों लोगों को बंधक बना लिया था। यह सिलसिला 14 दिनों तक लंबा खिंच गया, फिर इन हथियारबंद हमलावरों के खिलाफ सेना ने कार्रवाई की थी। माना जाता है कि इसी सैन्य कार्रवाई के बाद सऊदी अरब की सूरत-सीरत सब बदल गई थी।

कब हुई थी घटना और कौन थे हमलावर: 20 नवंबर 1979 को इस्लाम की सबसे पवित्र जगहों में एक मक्का में सुबह करीब 5 बजकर 15 मिनट का वक्त था, नमाज खत्म ही हुई थी कि सैकड़ों हथियारबंद लोग परिसर में नजर आने लगे। तभी एक शख्स माइक के तरफ बढ़ा और कुछ निर्देश देने लगा। इस शख्स का नाम जुहेमान अल ओतायबी था, वह अति कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम सलाफ़ी गुट की अगुआई करने वाला बद्दू मूल का युवा सऊदी प्रचारक था। बाद में पता चला कि ओतायबी कुछ समय तक सऊदी अरब की सेना में रहा था।

जब कहा गया कि ‘आ गए माहदी’: ओतायबी ने अपने भाषण के दौरान कहा कि माहदी आ गए। इस्लामिक मान्यताओं में माहदी को धरती के रक्षक के रूप में माना गया है, जो कयामत से पहले राज करते हुए बुराई का नाश करते हैं। उसने कहा कि अब इस अन्याय और अत्याचार से भरी पृथ्वी पर न्याय होगा। हमलावर ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे लगाने लगे। फिर ओतायबी ने मोहम्मद अबदुल्ला अल कहतानी के लिए सम्मान जताया। दरअसल, ओतायबी का मानना था कि सऊदी के लोग इस्लाम के रास्ते से भटक गए हैं और पश्चिमी देशों के इशारे पर चल रहे हैं। सभी जगहों पर भ्रष्टाचार हो रहा है।

करीब एक लाख लोग थे बंधक: अल हरम मस्जिद में यह सब चल ही रहा था कि तब तक सऊदी पुलिस के निहत्थे पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए, जिन्हें मार दिया गया। अल हरम मस्जिद में इस घटना के दौरान करीब एक लाख लोग मौजूद थे, जो कि बंधक बनाए जा चुके थे। पूरी दुनिया में यह खबर फैलते ही लोग सन्न हो चुके थे। घटना के वक्त तत्कालीन क्राउन प्रिंस फहद बिन अब्दुल अजीज अपने अमले के साथ ट्यूनिशिया गए थे। जबकि सऊदी नेशनल गार्ड्स के प्रमुख प्रिंस अब्दुल्ला बिन अब्दुल अजीज मोरक्को में थे।

पहले से थी हमले की तैयारी: इस घटना के दौरान डर बनाए रखने के लिए हमलावर लगातार हवाई फायरिंग कर रहे थे, उन्होंने सऊदी के लोगों को रोक लिया और फिर दूसरे देश के लोगों को रिहा करना शुरू कर दिया। पता चला कि हमलावरों ने कुछ दिन पहले ही पूरी योजना के तहत खाद्य-रसद मस्जिद के अन्दर पहुंचा ली थी। साथ ही हथियारों की खेप को ताबूतों में लाया गया था। बड़े असमंजस के बीच सैन्य कार्रवाई शुरू हुई, मस्जिद की बिजली काट दी गई और सेना मस्जिद के अंदर दाखिल हो गई।

हमलावरों की मिली थी मौत की सजा: पाकिस्तान और फ्रांस ने अपनी कमांडो टीम को सऊदी अरब भेजा, फिर तत्कालीन मेजर परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान की रहबर कमांडो टीम को लीड किया। कुछ हमलावर मस्जिद के अंडरग्राउंड में भी छिपे थे और मस्जिद के आधे हिस्से में उनका कब्ज़ा था। इस सैन्य कार्रवाई में सैकड़ों हमलावर मारे गए और बड़ी संख्या में आम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस घटना में खुद को माहदी बताने वाले अल कहतानी की भी मौत हो गई। अब इस बंधक संकट को 14 दिन बीत चुके थे, 4 दिसम्बर को ओतायबी समेत जिंदा बचे कई हमलावरों ने सरेंडर कर दिया। फिर बाद में 9 जनवरी 1980 के दिन ओतायबी समेत 63 लोगों को सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दे दी गई थी।