देश के अधिकतर लोगों को 1919 के जलियांवाला बाग की कहानी मालूम होगी, जो इतिहास में काले अध्याय के रूप में शामिल है। कुछ ऐसा ही गोलीकांड साल 1921 में रायबरेली के मुंशीगंज में हुआ था, जिसे मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से जानते हैं। इस गोलीकांड में अंग्रेजों ने किसानों पर गोली चलवाकर ऐसा जुल्म ढाया था, जिससे सई नदी का पूरा पानी लाल हो गया था।
ब्रिटिश शासन के दौर में रायबरेली में किसान आंदोलन कर रहे थे। कारण था कि अंग्रेजों के शासनकाल में जमींदार और कोटेदार वर्ग का खासा वर्चस्व रहता था। अंग्रेज इसी वर्ग के सहारे किसानों को तरह-तरह के टैक्स वसूलते। इन सब बातों से आजिज आकर रायबरेली के किसानों ने आंदोलन छेड़ दिया। तत्कालीन तालुकेदारों और कोटेदारों के अत्याचार से तंग आकर 5 जनवरी 1921 को किसान अमोल शर्मा, बाबा जानकीदास, बाबा रामचंद्र, चंद्रपाल सिंह व अन्य की अगुवाई में जनसभा कर रहे थे।
इस आंदोलन में आसपास के कई गांवों के किसान शामिल हुए। अंग्रेजों को लगा कि यदि जल्दी ही कोई कदम न उठाया गया तो यह आंदोलन गले की हड्डी बन जाएगा। किसान आंदोलन के इस दमन में कुछ तालुकेदारों ने भी तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ का साथ दिया। अंग्रेजों को तालुकेदारों का साथ मिला तो किसान नेताओं अमोल शर्मा, चंद्रपाल सिंह और बाबा जानकीदास को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर उसी दिन इन नेताओं को लखनऊ जेल भिजवा दिया गया।
इसी दौरान अफवाह फैली कि अंग्रेजो ने लखनऊ जेल में अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास की हत्या कर दी गई। अपने नेताओं की हत्या की बात सुनकर किसान आक्रोशित हो उठे और 7 जनवरी 1921 कि रायबरेली में सई नदी के किनारे किसानों का विशाल जनसमूह जुटने लगा। अंग्रेजों ने भी दमनकारी नीति अपनाते हुए पुलिस बलों की कई टुकड़ियां तैनात कर दी।
कुछ दिनों पहले ही कुछ किसान नेताओं ने तार के माध्यम से रायबरेली में बिगड़ते हालातों के बारे में जवाहर लाल नेहरु को जानकारी दे दी थी। इस भारी विरोध के नेहरू भी रायबरेली पहुंच गए। नेहरू नदी के पुल तक पहुंचे लेकिन फिर उन्हें कलेक्ट्रेट में नजरबंद कर दिया गया। बताते हैं कि अंग्रेजों ने इस गोलीकांड के लिए पहले ही योजना बना ली थी। प्रशासन का आदेश मिलते ही पुलिसवालों ने हजारों निहत्थे किसानों पर गोलियां बरसा दीं।
रायबरेली के मुंशीगंज इलाके में सई नदी के किनारे विरोध जता रहे किसानों की लाशें बिछ गईं। नदी पर बने पुल और नीचे किनारों पर हजारों लोग बदहवास हालत में पड़े रहे। इनमें कई मर चुके थे तो कई घायल थे। कहा जाता कि 7 जनवरी को मुंशीगंज में हुए इस गोलीकांड के कारण नदी का पानी लाल हो गया था।
इस कांड में मृतकों की संख्या की आधिकारिक जानकारी कभी नहीं हो पाई। हालांकि, मृतकों की संख्या सैंकड़ों में बताई गई थी। आज भी रायबरेली में इन किसानों के नाम पर शहीद स्मारक बना हुआ है। मुंशीगंज का यह गोलीकांड गुलाम भारत में साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग के बाद दूसरा सबसे बड़ा हत्याकांड था।