Suicide Cases: नौजवानों के बीच बढ़ते आत्महत्या के मामले के बीच एक खुशखबरी सामने आई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में युवाओं की आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों के बीच एक रिसर्च में दावा किया गया है कि इस खतरनाक प्रवृत्ति पर लगाम लगाई जा सकती है। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला (Punjabi University, Patiala) के मनोविज्ञान विभाग की एक टीम ने राज्य के नौजवानों के बीच आत्महत्या के विचार से निपटने में डीबीटी थेरेपी (DBT Therapy) के रूप में जानी जाने वाली द्वंद्वात्मक व्यवहार थेरेपी के असर पर शोध (Reserch) किया। यह शोध डॉ. हरप्रीत कौर के मार्गदर्शन में शोधकर्ता अमनदीप सिंह द्वारा किया गया था।

डीबीटी थेरेपी को लेकर कैसे किया गया रिसर्च, किन्हें चुना गया

शोध मार्गदर्शक (Reserch Guide) डॉ. हरप्रीत कौर ने कहा कि इस शोध के दौरान पंजाब के 18 जिलों के 100 युवाओं को डीबीटी दिया गया, जिनमें आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने के विचारों के लक्षण थे। उन्होंने कहा कि शोध के पहले चरण के दौरान, इस मानसिक स्थिति के विभिन्न मनोवैज्ञानिक भविष्यवक्ताओं का अध्ययन किया गया। इस प्रकार, विभिन्न मानकों और मानदंडों के माध्यम से परीक्षण के बाद ऐसे विचारों की चपेट में आए लोगों की पहचान/चिह्नित की गई और उन्हें इस खास डीबी थेरेपी के लिए चुना गया।

डीबी थेरेपी के बाद युवाओं की मानसिक स्थिति में आया सुधार

रिसर्च के मुताबिक डीबी थेरेपी के बाद युवाओं की मानसिक स्थिति में सुधार पर डेटा इकट्ठा किया गया और 50 अन्य युवाओं के डेटा के साथ तुलना की गई, जिन्हें अभी तक यह थेरेपी नहीं दी गई थी। इन दोनों श्रेणियों के आंकड़ों के तुलनात्मक विश्लेषण से जो नतीजे सामने आए, उससे यह स्पष्ट होता है कि ऐसे मामलों में डीबी थेरेपी का इस्तेमाल निश्चित रूप से कारगर हो सकता है। डॉ. हरप्रीत कौर ने कहा कि हमारी विशिष्ट आबादी के लिए विशिष्ट मॉड्यूल का परीक्षण उन्नत मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।

छह महीने तक जारी रहा फॉलो-अप, आत्महत्या की प्रवृति दूर करने में डीबीटी कारगर

शोधकर्ता (Resercher) अमनदीप सिंह ने कहा कि 12 सत्रों में 100 चयनित लोगों को थेरेपी प्रदान की गई। जिन 50 लोगों को वेटिंग लिस्ट में थेरेपी नहीं दी गई, उन्हें बाद में वही थेरेपी दी गई। इसके बाद प्राप्त परिणामों से यह भी स्पष्ट हुआ कि उनकी मानसिक स्थिति में काफी सुधार हुआ था क्योंकि उन्होंने आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने के विचारों पर काबू पा लिया था। साथ ही, कुछ प्रतिभागियों से यह देखने के लिए फॉलो-अप भी किया गया कि क्या डीबीटी बदलाव लाने में सक्षम है या नहीं। उन्होंने कहा कि नतीजों से पता चला कि छह महीने के बाद निगरानी करने पर सुधार जारी रहा। यहां तक ​​कि छह महीने तक उनकी मानसिक स्थिति बेहतर स्थिति में रही, जिससे आत्महत्या के विचार के इलाज के लिए डीबी थेरेपी को असरदार पाया गया।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंची मानसिक सेहत को लेकर बेहद जरूरी बात

कुलपति प्रो अरविंद ने इस शोध पर शोध पर्यवेक्षक, शोधकर्ता और मनोविज्ञान विभाग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में जब हर इंसान का जीवन जटिल हो गया है और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, समाज और वर्गों में ऐसे कई व्यक्ति हैं जिन्हें चुनौतीपूर्ण विचारों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें खुद के खराब आकलन और नुकसान की ओर ले जाते हैं। इस शोध को दो अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त हुए हैं और उत्तरी आयरलैंड में आयोजित अंतरराष्ट्रीय आत्मघाती विचार संघ सम्मेलन में भी इसे विशेष प्रशंसा मिली है।