उसने टीवी धारावाहिक में देखा था कि किसी को जहर दे कर कैसे मौत के घाट उतारा जा सकता है? लिहाजा उसने एक जिंदा छिपकली को पकड़कर पहले उसे खौलते हुए दूध में उबाल दिया और फिर यह दूध उसने अपने शिकार को पीने के लिए दे दिया। लेकिन इत्तिफाक से उसके शिकार ने यह दूध पीने से इनकार कर दिया। आखिर क्यों यह शख्स किसी की हत्या करने पर उतारू था? और जब उसका एक प्लान फेल कर गया तब उसने किस प्लान के तहत जुर्म को अंजाम दिया? यह पूरी कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं। यह मामला है मुंबई का। मुंबई के अंटाप हिल में इंदिरा नगर को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में बी विंग के एक मकान में साल 2011 में दो महिलाओं की लाश मिली। मरने वालों में 53 साल की रंजना नागोदकर और उनकी साढ़े तीन साल की नातिन वैष्णवी शामिल थीं। पता चला कि रंजना नागोदकर इस घर में अपनी बेटी शीतल और दामाद संतोष के साथ रहती थीं। 3 जून 2011 को जब शीतल ड्यूटी से घर लौंटी तो घर का नजारा देख उनकी चीख निकल गई। घर में उनकी मां और बेटी खून से लथपथ जमीन पर पड़ी थीं। घर से ज्वैलरी और पैसे भी गायब थे।
मामले की खबर जैसे ही पुलिस को लगी पुलिस इसकी तफ्तीश में जुट गई। मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने शीतल के करीबी और उनके परिवार वालों से बातचीत कर जानकारियां जुटाने की कोशिश की लेकिन उस वक्त उसके हाथ कुछ खास सफलता नहीं लगी। शीतल के एक परिचित विशाल श्रीवास्तव उर्फ सोनू ने आरोप लगाया था कि संतोष और शीतल के रिश्ते ठीक नहीं थे और दोनों के बीच प्रॉपर्टी को लेकर झगड़ा होता था। सोनू ने अंदेशा जताया था कि इस हत्याकांड के पीछे संतोष हो सकता है। क्राइम ब्रांच की टीम को आसपास के लोगों से पूछताछ में यह भी पता चला था कि हत्या के दिन संतोष ऑफिस के लिए निकलने के थोड़ी देर बाद वापस घर भी आया था। लेकिन पुलिस को सोनू की बातों पर ज्यादा यकीन नहीं था।
लिहाजा क्राइम ब्रांच ने सोनू के फोन डिटेल्स का रिकॉर्ड निकलवाया। पता चला कि सोनू हत्या के दिन दोपहर तीन बजे के करीब अटांप हिल में था। 4 बजे वो सीएसटी स्टेशन गया था और 5 बजे वो वापस अंटाप हिल चला गया था। इस दिन उसने रात 12 बजे अपने एक दोस्त से फोन पर बातचीत भी की थी। हालांकि क्राइम ब्रांच की टीम ने इस सिलसिले में उससे पूछताछ की लेकिन उसे कोई खास सुराग हाथ नहीं लगा। पुलिस मामले की जांच में जुटी थी और इस बीच करीब 2 महीने बाद सोनू ने पुलिस को एक लेटर दिया कि वो कानपुर जा रहा है और अगर पुलिस को कुछ उससे पूछताछ करनी हो तो वो कभी भी हाजिर हो सकता है। सोनू ने अपने पिता का नंबर भी पुलिस वालों को दिया था।
सोनू को ही इस हत्याकांड के केंद्र में रखकर अब पुलिस इस मामले की जांच करने लगी। क्राइम ब्रांच की टीम ने सोनू के एक जिगरी दोस्त से फोन करवाया कि वो कानपुर आ रहा है और उसे 10 हजार रुपए की जरुरत है। दोस्त को 10,000 रुपए देने के लिए सोनू तैयार हो गया। दरअसल पुलिस को पता चला था कि सोनू का बड़ा भाई अमेरिका में रहता था और वो अक्सर वहां से सोनू के लिए खर्च भेजता था लेकिन पिछले कुछ महीनों से सोनू का बड़ा भाई उसे पैसे नहीं भेज रहा था। पुलिस को शक हुआ कि खुद गरीबी में जी रहा सोनू अपने दोस्त इतने पैसे कहां से देगा? सोनू ने अपने दोस्त को यह भी बताया था कि वो कानपुर में एक ज्वैलरी की दुकान में नौकरी कर रहा है और उसकी सैलरी बहुत अच्छी है इसलिए वो अब वापस मुंबई नहीं आएगा।
अब पुलिस के पास इस हत्या को लेकर एक मोटिव का पता तो चल गया था लेकिन हत्यारा उसकी पकड़ से दूर था। पुलिस ने इसके बाद कानपुर जाकर पता लगाया तो पता चला कि सोनू ने जिस ज्वैलरी दुकान में नौकरी करने की बात कही थी वो वहां नौकरी नहीं करता था। इसके बाद पुलिस ने सोनू को पकड़ लिया और उससे कड़ाई से पूछताछ शुरू की। इस बार सोनू पुलिस के तीखे सवाले के सामने ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया। सोनू ने बताया कि वो शीतल के घर उसकी बेटी वैष्णवी को पढ़ाने जाया करता था।
वो आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उसने एक दिन घर में शीतल और उसकी मां को बातचीत करते सुना था कि घर में ज्वैलरी रखी हुई है। मौका पाकर वो एक दिन घर की छत से उनके घर में दाखिल हुआ। उसे मालूम था कि बक्शे की चाभी रसोईघर में रखी हुई है। उसने घर में रखे डम्बल से मासूम बच्ची और उसकी नानी की हत्या कर दी। इसके बाद वो गहने लूट कर फरार हो गया। इस दिन हत्या के बाद वो यहां से भागने के चक्कर में था। इसीलिए वो कानपुर जाने वाली ट्रेन में बैठ गया लेकिन उसे लगा कि उसके भागने से पुलिस को उसपर शक हो जाएगा इसलिए वो ट्रेन से उतर कर वापस अटांप हिल आ गया। (और…CRIME NEWS)

