जासूस हमेशा ही अपनी जान हथेली पर रख अपना काम करते हैं। आज हम बात करेंगे हिन्दुस्तान के सबसे बड़े जासूस रविंद्र कौशिक की। रविंद्र कौशिक के बारे में बताया जाता है कि उनका जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ। बचपन से ही एक्टिंग के शौकिन राजेंद्र कौशिक साल 1972 में लखनऊ में आयोजित एक नाटक में हिस्सा लेने पहुंचे थे। इस नाटक में रविंद्र एक ऐसे जासूस की भूमिका निभा रहे थे जो चीन में जाकर फंस जाता है और काफी प्रताड़नाएं भी सहता है।
नाटक में रविंद्र के रोल को देखकर सेना के कुछ अधिकारी काफी प्रभावित हुए थे। उनके काम से खुश होकर सैन्य अधिकारियों ने उन्हें इंडियन इंटेलिजेंस का हिस्सा बना लिया। पहली बार रविंद्र को पाकिस्तान में जासूसी करने का काम सौंपा गया। रविंद्र रजेडिंट एजेंट के तौर पर पाकिस्तान गए और उनका यह मिशन बेहद सफल रहा।
लाहौर को बनाया ठिकाना
इसके बाद साल 1975 उन्हें एक बड़े मिशन को कामयाब बनाने के लिए दोबारा पाकिस्तान भेजा गया। इस बार रविंद्र कौशिक नबी अहमद शाकिर बनकर पड़ोसी मुल्क में दाखिल हुए और आगे चलकर इस नाम ने पाकिस्तान के कॉलेजों से लेकर सैन्य ठिकानों तक में काफी सुर्खियां बटोरी।
जासूस के तौर पर पाकिस्तान में दाखिल होने के बाद रविंद्र कौशिक ने लाहौर को अपना ठिकाना बनाया। यहां उन्होंने एक बड़े कॉलेज में दाखिल लिया और एकेडमिक डिग्री तक हासिल कर ली। पहचान छिपाने में माहिर रविंद्र कौशिक बड़ी चालाकी से पाकिस्तानी सेना में भी भर्ती हो गये। अपनी लगन से उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी में अधिकारी का ओहदा भी हासिल किया। यह भी कहा जाता है कि किसी को उनपर शक ना हो इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान के ही एक अधिकारी से शादी रचाई।
पाकिस्तानी साजिशों को किया नाकाम
इसके बाद शुरू हुई पाकिस्तानी सैन्य गतिविधियों की जासूसी। 1971 की हार से बौखलाई पाक फौज भारत से बदला लेने के लिए लगातार साजिशें रच रही थी। लेकिन रविंद्र कौशिक पाकिस्तान की साजिशों के बारे में भारत को पहले ही जानकारी दे दे रहे थे औऱ इस तरह पाकिस्तान की कई साजिशें नाकाम हो गईं।
मिला ‘टाइगर’ का खिताब
खुद आईबी के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर एम.के. धर ने कौशिक पर लिखी अपनी किताब मिशन टू पाकिस्तान में लिखा है कि रविंद्र कौशिक हमारे लिए एक धरोहर थे। कौशिक पाकिस्तान में भारतीय इंटेलिजेंस की धुरी बन गए थे। रविंद्र कौशिक की वजह से ही एक बार 20 हजार भारतीय सैनिकों की जान बची थी। कई बार ऐसे मौके आए जब कौशिक ने भारत के लिए कई अहम जानकारियां भेजीं और शायद इसी वजह से देश के तत्कालीन गृहमंत्री ने रविंद्र कौशिक को ‘टाइगर’ का खिताब दिया था।
साल 1983 में इनायत मसीह नाम का एक और जासूस को पाकिस्तान भेजा गया। इनायत मसीह की एक गलती की वजह से ‘टाइगर’ का भेद पाकिस्तानी सेना के सामने खुल गया। इसके बाद ‘टाइगर’ को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पाकिस्तानी सेना के सियालकोट सेंटर में रखा गया और उनसे राज उगलवाने की कोशिश की गई। हालांकि ‘टाइगर’ ने हजारों जुल्म सहने के बावजूद मुंह नहीं खोला। साल 1985 में उन्हें मियांवालां जेल भेज दिया गया। यह कई दिनों तक कैद रहने के बाद वो काफी बीमार पड़े और फिर उनकी मौत हो गई। कहा जाता है कि बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की जासूसी पर आधारित फिल्म में ‘टाइगर’ की जिंदगी से काफी प्रभावित थी।