सुल्ताना डाकू और भूपत सिंह चौहान समेत कई कुख्यात डकैतों की कहानी आपने सुनी होगी। आज हम जिस डकैत के बारे में आपको बताने वाले हैं उसने 60 के दशक में बड़े-बड़े अपराध किये थे। हम बात कर रहे हैं मोहम्मद खान की। मोहम्मद खान ढरनाल का जन्म साल 1927 में ढरनाल में हुआ था। कभी मोहम्मद खान फौज में हवलदार हुआ करता था और उसके डकैत बनने की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। बताया जाता है कि अपनी ही बिरादरी के एक झगड़े में बहुत पहले मोहम्मद खान के भाई की हत्या कर दी गई थी।

मोहम्मद खान ने उस वक्त अपनी भाई की हत्या का बदला लेने का फैसला किया था। बदले की आग में जल रहे मोहम्मद खान ने एक शख्स की हत्या कर दी थी और फरार हो गया था। इस हत्याकांड के बाद उस वक्त पुलिस ने उसे मुजरिम करार देते हुए उसके खिलाफ इश्तिहार जारी कर दिया था। बताया जाता है कि फरारी के दौरान मोहम्मद खान के विरोधियों ने उसके एक और भाई की हत्या कर दी। इसके बाद मोहम्मद खान अपने विरोधियों को मारने के लिए बदले की आग में जलने लगा। मोहम्मद खान ने अपना एक गैंग बनाया और यह गैंग धीरे-धीरे डाकुओं की टोली में तब्दील हो गया।

मोहम्मद खान ने एक-एक कर अपने कई विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया था। यह भी कहा जाता है कि इस बेखौफ डकैत ने कुछ हत्याएं तो पुलिस को सूचना देकर की थीं। कहा जाता है कि पश्चिमी पाकिस्तान के गवर्नर रहे नवाब ऑफ काला बाग मलिक अमीर से इस कुख्यात डकैत के गहरे संबंध थे। यहीं वजह थी पुलिस या कोई अन्य गिरोह इस कुख्यात पर हाथ डालने से कतराता था।

वर्ष 1965 के राष्ट्रपति चुनाव में उसने अपने क्षेत्र के सभी बीडी सदस्यों और चेयरमैन के वोट राष्ट्रपति अय्यूब ख़ान को दिलवाए थे। हालांकि नवाब ऑफ़ काला बाग के गवर्नर पद के ख़त्म होने के बाद वो गिरफ़्तार हो गया था। अदालत ने इस कुख्यात डकैत को 4 सजा-ए-मौत और 149 साल जेल की सजा सुनाई थी। बाद में मोहम्मद खान ने हाईकोर्ट में अपने खिलाफ केस करने वाले लोगों के खिलाफ अपील की थी। कहा जाता है कि मोहम्मद खान ने अपना मुकदमा खुद ही लड़ा था।

इसके बाद अदालत ने मोहम्मद खान को 2 सजा-ए-मौत से बरी कर दिया था। 8 जनवरी 1976 को उसे फांसी के तख़्ते पर लटकाने का आदेश जारी हुआ था लेकिन उस सज़ा से सिर्फ़ 5 घंटे पहले हाईकोर्ट ने सज़ा ए मौत को रोकने का हुक्म जारी कर दिया था। सन् 1978 में उसकी सज़ा-ए-मौत उम्रक़ैद में बदल दी गई और बेनजीर भुट्टो की सरकार के दौर में 60 साल से अधिक वाले कैदियों की सज़ा की माफ़ी के ऐलान के बाद मोहम्मद खान जेल से बाहर आ गया था। 29 सितंबर 1995 को मोहम्मद खान की मौत हुई थी।