महाराष्ट्र में ठाणे की एक अदालत ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के 2005 के एक मामले में आरोपी पति को इस बात पर गौर करते हुए बरी कर दिया कि पिछले 15 सालों से उसका कुछ पता नहीं चल पाया है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसने महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया या मजबूर किया।
पीटीआई-भाषा के अनुसार, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पीआर अष्टुरकर ने तीन दिसंबर को पारित आदेश में कहा कि आरोपी की मौजूदगी की उम्मीद में मामले को लटकाए रखना अनावश्यक होगा। आदेश की एक प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी परशुराम संगनबसप्पा कोंडगुले के खिलाफ आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा, इसलिए उसे संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए और बरी किया जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि महाराष्ट्र के ठाणे जिले के अंबरनाथ इलाके के निवासी आरोपी की शादी नीलावती से हुई थी और उनके दो बच्चे थे। आरोपी शराब पीने का आदी था, जिसके कारण दंपति के बीच अक्सर विवाद होता रहता था। आरोपी चार फरवरी 2005 को शराब के नशे में घर आया और दोनों के बीच फिर झगड़ा हुआ। उसने पत्नी से अपशब्द कहे जिसके बाद महिला ने खुद पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। महिला गंभीर रूप से जल गई और अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
‘‘किसी को कुछ भी नहीं पता’’
अदालत ने कहा कि पिछले 15 सालों से आरोपी का कुछ पता नहीं चल पाया है और वह कहां रह रहा है इस बारे में भी ‘‘किसी को कुछ भी नहीं पता’’। अदालत ने कहा कि निकट भविष्य में उसका पता लगाए जाने की भी कोई संभावना नहीं है। न्यायाधीश ने आगे् कहा, ‘‘आरोपी की मिलने की उम्मीद में मामले को लटकाए रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। यह बिना किसी नतीजे के एक अनंत प्रक्रिया होगी। इसलिए, आरोपी को बरी किया जाना चाहिए।’’