यह खूंखार डकैत कई दिनों तक पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर फरार रहा। माधो सिंह, चंबल की बीहड़ों का एक ऐसा नाम है जिसने साल 1960-1972 के बीच यहां राज किया। उसने जयप्रकाश नारायण के सामने सरेंडर किया था। उस वक्त चंबल के इस कुख्यात डकैत के साथ 500 अन्य डाकुओं ने भी आत्मसमर्पण किया था। बताया जाता है कि माधो सिंह 23 हत्याओं और करीब 500 किडनैपिंग केसों में शामिल रहा। पुलिस ने बरसों पहले उसके सिर पर डेढ़ लाख रुपए का इनाम रखा था।
चंबल में कूदने से पहले वो आर्मी के 18वें राजपूताना रायफल्स में बतौर कम्पाउंडर काम करता था। करीब एक साल तक यहां काम करने के बाद उसने यहां काम छोड़ दिया और ग्वालियर में होमियोपैथ की प्रैक्टिस करने लगा। कहा जाता है कि एक दुश्मनी का खात्मा करने के लिए माधो सिंह ने अपना गैंग बनाया और फिर हथियार उठा कर वो चंबल का सबसे बड़ा डकैत बन बैठा। 11 साल तक वो बीहड़ों में आतंक मचाता रहा। इस दौरान उसपर सैकड़ों मुकदमे दर्ज हुए।
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के पिनाहट थाने का एक गांव है गढ़िया बघरैना। इसी गांव के एक घर में रहने वाले किसान परिवार के घर माधो सिंह का जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई में माधो सिंह ठीक था और उसे खेलकूद भी पसंद था। यहीं वजह थी कि उसे फौज में नौकरी मिल गई थी। कहा जाता है कि माधो सिंह के घर की तरक्की हो रही थी और इसी बीच गांव के कुछ लोगों ने माधो सिंह पर चोरी का इल्जाम लगा दिया। माधो सिंह ने अपनी सफाई दी थी लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। इस दौरान एक बार माधो सिंह को घेर कर मारने की कोशिश भी गांव के ही कुछ दबंगों ने की थी।
इसी का बदला लेने के लिए माधो सिंह ने बंदूक उठाई और जा पहुंचा चंबल। चोरी के आरोप में माधो सिंह का नाम पुलिस की फाइलों में पहले ही दर्ज हो चुका था और डाकू बनने के बाद उसपर अपने 2 दुश्मनों की हत्या का आरोप भी लगा। माधो सिंह को चंबल में जगजीत सिंह नाम के एक डाकू का सहारा मिला। शुरू में वो इसी डकैत के गैंग में रहा और फिर उसने अपनी अलग गैंग बना ली।
खूंखार अपराध कर माधो सिंह ने पहले उत्तरप्रदेश के इलाके को और फिर चंबल पार कर मध्यप्रदेश और उसके बाद राजस्थान के इलाकों में भी अपने पैर जमा लिए। माधो सिंह के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसा डाकू था जिसकी उंगलियां एसएलआर या राईफल पर जितनी तेजी से चलती थी उससे भी तेज चलता था उसका दिमाग।
माधो सिंह के बारे में कहा जाता था कि पुलिस को जो हथियार 1971 के बाद मिले वो पहले से ही माधो सिंह के पास थे। 13 मार्च 1971 को पुलिस के साथ डाकुओं की एक बड़ी मुठभेड़ हुई थी। जिसमें पुलिस ने माधो सिंह के गैंग के सबसे भरोसे के आदमी कल्याण उर्फ कल्ला, गर सिंह, चिंतामण, बाबू और विशंभर सिंह जैसे 13 डकैतों को मार गिराया था।
डाकू माधो सिंह ने मध्य प्रदेश मुरैना में पगारा डैम पर समर्पण किया था। माधो सिंह के साथ डाकू मोहर सिंह सहित 500 डाकुओं ने हथियार डाले थे। डाकुओं के लिए शर्तों मनवाने के बाद माधो सिंह ने डाकुओं के शिकार लोगों के परिवारों लिए भी मुआवजे और मदद की मांग की थी। इससे उसके खिलाफ ज्यादातर लोगों की नफरत खत्म हो गई। माधो सिंह को जेल हुई और उसने मुंगावली खुली जेल में अपनी सजा काटी। सजा पूरी होने के बाद वह लोगों को जादूगरी के खेल दिखाने लगा था। 1991 में माधो सिंह की मौत हो गई।