देश के इतिहास में कई नेताओं की हत्या हुई लेकिन जब बिहार के मिथिलांचल के ललित बाबू की हत्या हुई तो सब सन्न रह गए थे। एक कार्यक्रम में भाषण देकर वह मंच से उतर ही रहे थे कि एक बम ब्लास्ट ने सब खत्म कर दिया। ललित बाबू उस वक्त इंदिरा गांधी सरकार में रेल मंत्री हुआ करते थे। जब उनकी मौत हुई तो बिहार की सियासत एकाएक बदल गई लेकिन उनका दुनिया से जाना भी एक रहस्य रहा।

इंदिरा गांधी सरकार में रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा को लोग प्यार से ललित बाबू कहा करते थे। 2 जनवरी 1975 में वह समस्तीपुर से मुजफ्फर नगर के बीच एक रेल लाइन का उद्घाटन करने समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे थे। यहां उन्हें उद्घाटन के बाद संबोधित भी करना था। ललित बाबू के साथ उनके छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा और कांग्रेस के कई अन्य नेता भी मौजूद थे।

ललित बाबू ने अपना भाषण खत्म किया और मंच से नीचे उतरने लगे। तभी भीड़ की तरफ से एक बम उनकी ओर फेंक दिया। एक जोरदार धमाका हुआ और चारों तरफ धूल का गुबार फ़ैल गया। थोड़ी देर बाद धुआं छटा तो ललित बाबू, जगन्नाथ मिश्रा समेत कई नेता गंभीर रूप से घायल हो चुके थे। आनन-फानन में उन्हें ट्रेन से समस्तीपुर से दानापुर के अस्पताल लाया गया।

इस धमाके में बुरी तरह घायल हुए ललित बाबू ने 3 जनवरी को अंतिम सांस ली। इस हत्याकांड ने पूरे देश में सनसनी मचा दी क्योंकि यह देश के रेल मंत्री की हत्या थी। इस केस की जांच पहले सीआईडी के हाथ गई फिर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में विश्वेश्वरानंद, विनयानंद और विनयानंद को आरोपी बनाया। लेकिन इस पूरे मसले पर सालों तक परिवार ने विश्वास नहीं किया।

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था इस केस को बिहार से बाहर भेजा जाए। साल 1979 में कोर्ट ने मामले को बिहार से बाहर भेजा। फिर 1980 में दिल्ली में इस केस का ट्रायल शुरू हुआ था। सालों तक तक चली सुनवाई और जांच के बाद 2014 में सेशन कोर्ट ने रंजन द्विवेदी, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपाल जी को उम्रकैद की सजा सुनाई।

इस हत्‍या में सीबीआई ने आनंदमार्गियों का हाथ बताया, लेकिन उस वक्त ललित बाबू की पत्नी ने इसे मानने से इनकार कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और ललित बाबू के परिजनों ने कई नेताओं को पत्र लिखे। ललित बाबू की पत्नी ने भी देश के प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखा। ललित बाबू के परिजन हर बार यही कहते रहे कि जिन्हें सजा मिली वह असली कातिल है हीं नहीं।

यह हत्याकांड कई बार चर्चा में रहा और मामले में दोबारा से जांच की मांग भी की गई। लेकिन 40 साल बाद आए फैसले में आरोपियों को सजा दी गई। इंदिरा गांधी ने भी उस वक्त इस हत्या को विदेशी साजिश बताया था और आज भी यह मौत एक रहस्य मात्र बनकर रह गई है। एक समय यह भी कहा गया कि ललित बाबू की लोकप्रियता ही उनकी मौत का कारण बनी।