पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने अमेरिकी नागरिक से जुड़े ‘डिजिटल रेप’ के मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया। कोर्ट ने आरोपी शख्स को आईपीसी की संशोधित धारा 375 के तहत दोषी करार दिया था। इसके तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा देने का प्रावधान है। कोर्ट के इस फैसले के बाद सवाल उठने लगे हैं कि आखिर डिजिटल रेप क्या है? दरअसल, डिजिटल रेप से जुड़ी घटनाओं में महिला के प्राइवेट पार्ट में फिंगर्स का इस्तेमाल किया जाता है। निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ बढ़ते बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर लगाम कसने के लिए डिजिटल रेप में भी बेहद सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। धारा 375 को दिल्ली के निर्भया गैंगरेप मामले के बाद संशोधित किया गया जो 3 फरवरी, 2013 से प्रभावी हुआ था। इसमें कम से कम 7 वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है।
आईपीसी की धारा 375 में रेप को लेकर कई तरह की परिस्थितियों का जिक्र किया गया है। इसके तहत महिला से बनाए गए शारीरिक संबंध को दुष्कर्म की श्रेणी में रखा जाता है और दोषी पाए जाने पर आरोपी को उसके अनुसार ही सजा भी दी जाती है। आईपीसी की इस धारा के मुताबिक, यदि कोई पुरुष महिला की इच्छा और उनकी मंजूरी के बिना शारीरिक संबंध बनाता है तो वह रेप की श्रेणी में आएगा। इसके अलावा किसी महिला को उसके प्रियजन या परिजन की हत्या या उन्हें गंभीर नुकसान पहुंचाने का भय दिखाकर बनाया गया संबंध भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। आईपीसी की धारा 375 में किए गए प्रावधानों के तहत किसी महिला को नशीला पदार्थ देकर उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने को भी रेप माना गया है। साथ ही 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ संबंध बनाना भी रेप है।
दिल्ली गैंगरेप के बाद कानूनी प्रावधान हुए सख्त: वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद दुष्कर्म से जुड़े कानून को बेहद सख्त कर दिया गया है। साथ ही कई नियम एवं शर्तें भी लगाई गई हैं, जिन्हें महिलाओं के उत्पीड़न की श्रेणी में रखा गया है। अमेरिकी महिला की शिकायत पर दिल्ली की अदालत ने संशोधित कानून के आधार पर ही आरोपी को दोषी ठहराया। बता दें कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में रेप चौथे नंबर पर आता है।