केरल के कोट्टयम में 27 मार्च 1992 को सेंट पायस कॉन्वेंट के कुएं से एक सिस्टर अभया की लाश मिली। शुरुआती जांच में पुलिस ने इस घटना को आत्महत्या करार दिया। फिर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने पूरी कहानी ही पलट दी। बॉडी पर मिले चोट के निशान और घाव ने कत्ल की ओर इशारा किया। फिर जो सिलसिला शुरू हुआ वह 28 सालों बाद ख़त्म हुआ लेकिन इस दौरान कई ऐसे घटनाक्रम रहे, जिसने इस केस को सबसे पेचीदा बना दिया था।
इस मामले सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में बताया कि सिस्टर अभया कोट्टयम के सेंट पायस कॉन्वेंट रह रही थी। साल 1992 में उसकी लाश एक कुएं में पाई गई। स्थानीय पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया और फाइल बंद कर दी। हालांकि, इस केस में कई ऐसी बातें थी जिसने लोगों को एकजुट कर दिया और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। भारी दबाव के बीच सीबीआई की जांच 1993 में शुरू हुई और 15 साल तक चली।
इस केस में सबसे चर्चित कहानी सामने आई कि वारदात की तारीख को सिस्टर अभय सुबह चार बजे उठी थी, क्योंकि उसकी एक परीक्षा होनी थी। इसी दौरान उसने एक नन को दो पादरियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया। इसी कारण सिस्टर अभया की जान चली गई। फिर कई सालों की जांच प्रक्रिया में सबूत मिटाने की कोशिश की गई। सीबीआई की शुरुआती तीन रिपोर्ट्स में कहा गया कि जांच करना संभव नहीं है, क्योंकि सबूत मिट गए हैं।
इसके बाद जांच सीबीआई की केरल ब्रांच के हाथ में आई तो इसमें हत्या और सबूत मिटाने के आरोपियों के तौर पर फादर कोट्टूर, फादर जोस और सिस्टर सेफी का नाम सामने आया। जिन्हें बाद में 2008 में अरेस्ट भी किया गया। सीबीआई के चार्जशीट के मुताबिक, सिस्टर अभया ने इन आरोपियों को आपत्तिजनक अवस्था में देखा था; ऐसे में राज जाहिर न हो जाए इसलिए सिस्टर को मारकर कुएं में फेंक दिया।
इस चार्जशीट में यह भी बताया गया कि फादर कोट्टूर ने जहां गला घोटा तो वहीं सिस्टर सेफी ने सिस्टर अभया पर कुल्हाड़ी से हमला किया था। इसके बाद घटना के सबूत मिटाए गए, जिनमें केस की जांच कर रहे अधिकारी केटी माइकल का नाम सामने आया। साल 2009 में तीनों आरोपियों का नार्को टेस्ट भी किया गया और सीबीआई ने 150 से ज्यादा गवाहों की लिस्ट थमाई।
इस पूरे केस की जांच के दौरान कई गवाहों की मौत हो गई, जिनमें कॉन्वेंट की प्रमुख मदर सिस्टर लीजियक्स और चौकीदार एस. दास का नाम भी शामिल था। वहीं सिस्टर अभया के माता-पिता का निधन भी केस के दौरान ही 2016 में हो गया। इसके अलावा 150 से ज्यादा गवाहों की लिस्ट में करीब दर्जन भर गवाह अपने शुरुआती बयानों से भी पलट गए। 2018 में जांच अधिकारी केटी माइकल भी आरोपी बनाए गए लेकिन इसी साल फादर जोस को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया।
साल 2019 में सीबीआई कोर्ट में इस मामले का ट्रायल शुरू हुआ और एक साल तक चली सुनवाई के बाद 2020 में को मामले में दोषी करार दिए गए फादर कोट्टूर और सिस्टर सेफी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दिलचस्प यह था कि सीबीआई की तरफ इस मामले में एक गवाह राजू नाम का एक चोर भी था, जो वारदात के दिन वहां चोरी करने पहुंचा था। उसी ने फादर थॉमस कुट्टूर समेत दो लोगों को सेंट पायस कॉन्वेंट परिसर में देखा था।
