आज बात एक ऐसे आर्म डीलर की जिसे मौत का सौदागर कहा गया। माना गया कि इस शख्स ने देशों को अलग-अलग तरीके से विद्रोह की आग में झोंका था। दुनिया के अपराध इतिहास में इसका नाम बेसिल जाहरॉफ के रूप में दर्ज है। बेसिल का असली नाम बेसिलियोस ज़ाचरियास था और जन्म 1849 में तुर्की के मुआला शहर में हुआ था। बेसिल जब अंतर्राष्ट्रीय आर्म डीलर बना तो उसका नाम दुनिया के अमीर व्यक्तियों में गिना जाता था।

बेसिल जाहरॉफ, ग्रीक माता-पिता का बेटा था, जिन्होंने रूस में निर्वासन में बिताए वर्षों के दौरान परिवार के नाम को रूसी में बदल दिया था। हालांकि, उसे यूरोप के सबसे रहस्यमय व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता था, क्योंकि उसके बारे में लोगों के बीच बहुत कम जानकारी थी। बेसिल साल 1866 में स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैंड गये और फिर 1870 में वहीं चाचा के कपड़ों के कारोबार में साथ हो लिए। लेकिन दो साल बाद बेसिल के चाचा ने उन पर गबन करने का आरोप लगाया।

गबन के आरोपों के बीच मामला कोर्ट में गया लेकिन बाद में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया। इसके बाद बेसिल ने लंदन छोड़ दिया और एथेंस पहुंच गया। यहां उसकी मुलाकात एक फाइनेंसर और राजनयिक स्टेफानोस स्कोलोडिस से हुई। स्कोलोडिस की सिफारिश पर उसे स्वीडिश बंदूक डिजाइनर थोरस्टेन नॉर्डेनफेल्ट कंपनी का एजेंट बना दिया गया। फिर 1897 मे ब्रितानी कंपनी विकर्स सन्स एंड कंपनी ने नॉर्दनफेल्ट को खरीद लिया और बेसिल की किस्मत भी खुल गई।

बेसिल ने इस हथियार के धंधों में तरकीब लगाईं और पहले वह चालाकी से देशों के बीच की दुश्मनी को बढ़ाते और फिर दोनों को सारा साजोसामान बेच देते थे। इस तरह उन्होंने कई दो तनावपूर्ण संबंध वाले देशों के बीच हथियार खरीदने की होड़ लगा दी। बेसिल जाहरॉफ थोड़े ही समय में हथियार बेचकर करोड़पति बन गया। माना जाता है कि 1904-05 में एशिया और अफ्रीका में ब्रितानी उपनिवेशवाद के खिलाफ हुए विद्रोह में भी जाहरॉफ हाथ रहा।

जाहरॉफ को एक देश को दूसरे देश के खिलाफ भड़काने वाला माना जाता था। जिसके चलते उसने तुर्की, यूनान और रूस में भी अपना धंधा फैलाया और कई पनडुब्बियां बेचीं, जिनमें से नॉर्दनफेल्ट पनडुब्बी प्रमुख थी। हालांकि, बेसिल अपने निजी जीवन में भी बड़ा ही अस्थिर रहा। पहली पत्नी को उसने इंग्लैंड में छोड़ा और फिर स्पेन की मारिया दे पिलार से 1923 में शादी कर ली। अपने अंतिम समय से पहले वह मॉन्टे कार्लो में बस गया और 1936 में उसकी मौत हो गई।