1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण ने अमेरिका की खासी किरकिरी कराई थी। इस दौर के बाद अमेरिका भारत को लेकर बेहद सचेत हो गया था। वह सिर्फ सैटलाइटों के भरोसे भारत पर नजर नहीं रखना चाहता था बल्कि भारत के खुफिया विभाग के अंदर की जानकारी भी जुटाना चाहता था। इसके लिए उसने कुछ एजेंट्स को तोड़ने की कोशिश की और इसमें उसे रबिंदर सिंह के रुप में सफलता मिली। जो उन दिनों RAW में तैनात थे। भारत की एजेंसी ने जैसे ही इस डबल एजेंट तो पकड़ने की कोशिश की, वह फरार होने में कामयाब हो गया था।
कई पूर्व एजेंट्स और विशेषज्ञों ने अपनी किताब में रबिंदर सिंह के डबल एजेंट के तौर पर काम करने की बात कही है। रिसर्च एंड अनालिसिस विंग में काम कर चुके मेजर जनरल विनय सिंह ने अपनी किताब इंडियाज़ एक्सटर्नल इंटेलिजेंस सीक्रेट्स RAW में लिखते हैं कि अपने करियर में बेहद औसत अफसर रहे। शुरुआत में उन्हें पाकिस्तान में चलाए जा रहे ट्रेनिंग कैंपों की जिम्मेदारी जुटाने के लिए कहा गया था। इसके बाद उन्हें पश्चिम एशिया और हॉलेंड में तैनात किया गया और उन्हें सिखों की हरकतों पर नजर रखने के लिए कहा गया था।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 90 के दशक में रबिंदर सिंह जब हॉलैंड में पोस्टेड थे और भारतीय दूतावास में काम किया करते थे तो अमेरिकी एजेंसी CIA ने उन्हें भर्ती किया था। उनके हाव भाव में आए बदलाव के बाद रॉ की काउंटर इंटेलिजेंस की यूनिट ने उन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी। उनकी जांच में सामने आया था कि रबिंदर ने CIA के अपने हैंडलर को सूचनाएं पहुंचाने के लिए कई अलग अलग इमेल का इस्तेमाल किया था और करीब 600 ईमेल भेजे थे।
‘रॉ अ हिस्ट्री ऑफ़ इंडियाज कॉवर्ट ऑप्रेशंस’ किताब के लेखक यतीश यादव बताते हैं कि रबिंदर पर नजर रखने के लिए जबरदस्त तैयारी की गई। उन्हें रंगे हाथ पकड़ने के लिए उनके दफ्तर में एक हिडन कैमरा लगाया गया। फोटो कॉपी मशीन में एक बग लगाया गया ताकि वह जिस भी पेपर की कॉपी निकालें उसकी एक कॉपी सिस्टम में स्टोर हो जाए। इसके अलावा कार में भी हिडन कैमरा और माइक लगाया था। साथ ही घर के अंदर भी हिडन कैमरे इंस्टॉल किए गए थे।
इतना ही नहीं रबिंदर सिंह के घर के बाहर जो सब्जी वाला था वह भी काउंटर इंटेलिजेंस का आदमी था, उनकी कार की सफाई करने वाला तक तो काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट का सदस्य था। यतीश यादव के अनुसार रबिंदर के काम करने का तरीका बेहद साधारण था। वह खुफिया दस्तावेज छिपा कर लाता था। फिर अमेरिका के खास कैमरों की मदद से फोटो खींचता और हार्ड डिस्क में स्टोर करता। सिक्योर इंटरनेट प्रोटोकॉल के जरिए उन्हें अमेरिका को भेजता और फिर हार्ड डिस्क और लैपटॉप से मिटा देता।
मेजर जनरल विजय कुमार सिंह ने अपनी किताब में बताया है कि रबिंदर सिंह को कई बार अपने कमरे को बंद करके दस्तावेजों की फोटो कॉपी करते हुए देखा गया था। रबिंदर सिंह को पकड़ जाने की भनक दो हफ्ते पहले लग गई थी। वह बेहद शातिराना तरीके से फरार होने में कामयाब रहे। जानकारी के मुताबिक रबिंदर पहले नेपाल गए और फिर वहां से अमेरिका के निकल गए।
जिस रात रबिंदर नेपाल के लिए फरार हुए, उस रात उनके घर के बाहर तैनात टीम ने पत्नी को घर से बाहर निकलते देखा था। पत्नी देर रात एक पारिवारिक सदस्य के साथ घर वापिस आई। मित्र भी वहां से चला गया लेकिन पत्नी को घर से बाहर निकलते नहीं देखा गया। सुबह जब कोई हलचल नहीं हुई तो पता करने पर जानकारी मिली की रात में ही निकल चुके थे।
बताते हैं कि फर्जी पासपोर्ट के जरिए साल 2004 में वह नेपाल से अमेरिका के लिए रवाना हुए थे। अमेरिका पहुंचते ही अमेरिकी एजेंसी ने अपना पल्ला झाड़ लिया था। जिसके कारण अगले कुछ साल उनका जीवन कठिनाई के साथ बीता। साल 2016 में एक सड़क दुर्घटना में रबिंदर की मौत हो गई थी।