देश में कई ऐसे डाकू हुए जिनकी धमक पूरे देश में थी। इन सब में एक नाम सुल्ताना डाकू का था जिसने ब्रिटिश हुकूमत के नाम में दम कर दिया था। वह खुद को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का वंशज बताता था और खुद के घोड़े का नाम भी उसने चेतक रखा हुआ था। कहा जाता है कि सुल्ताना डाकू ने कभी गरीबों का धन नहीं लूटा बल्कि अंग्रेजों को लूट कर वह धन गरीबों में बांटना उसकी आदत थी।

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मुरादाबाद के हरथाला गांव में जन्में सुल्ताना डाकू ने 17 साल की उम्र में ही जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया था। कुछ ही सालों में उसने ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारियों और जमींदार लोगों के बीच अपने नाम का खौफ पैदा कर दिया था। हालांकि, अपनी रहम-दिली और दिलेरी के लिए लोग उसे गरीबों का मसीहा भी करार देते थे। सुल्ताना डाकू का डर केवल उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं था बल्कि पंजाब, एमपी और राजस्थान के इलाकों में भी था।

जिम कार्बेट ने अपनी किताब ‘माई इंडिया’ के ‘सुल्ताना: इण्डियाज रॉबिन हुड’ अध्याय में सुल्ताना डाकू के बारे में लिखा है कि भले ही वह डाकू था लेकिन कभी किसी गरीब से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। जब भी किसी काम के लिए उससे चंदा मांगा गया, तब उसने पैसों से मदद की इसलिए ही उसे रॉबिनहुड का तमगा मिला था। सुल्ताना के गिरोह में करीब 100 डकैत शामिल थे जिन्हें पकड़ने के लिए कई बार अंग्रेज अफसरों ने प्रयास किये थे।

सुल्ताना डाकू ने नजीबाबाद में एक वीरान पड़े किले को अपना गुप्त ठिकाना बनाया था। उस दौरान अंग्रेज भी नैनीताल में अधिकतर वक्त गुजारा करते थे। इसी दौरान सुल्ताना डाकू अंग्रेज अफसरों के काफिले को अपना निशाना बनाया करता था। फिर चुपचाप इसी वीरान पड़े किले में छिप जाया करता था। साल 1921 के दौरान सुल्ताना का खौफ ऐसा था कि उसे पकड़ने के लिए 300 अंग्रेजों की एक टीम बनाई थी।

हालांकि, ब्रिटिश पुलिस अधिकारी फ्रेडी यंग ने शिकारी जिम कॉर्बेट और प्रीसी विन्धम की मदद से सुल्ताना को पकड़ा था। अंग्रेज अफसरों ने सन 1921 से सुल्ताना को ढूंढना शुरू किया था और करीब 2 साल बाद उसे फ्रेडी यंग ने हरिद्वार से जिंदा पकड़ लिया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी देने का आदेश दिया और उन्हें 8 जून, 1924 को बरेली जेल में फांसी दे दी गई।