दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि पत्नी ‘कामधेनु गाय’ नहीं है। इस मामले में कोर्ट ने दंपत्ति के बीच तलाक की मंजूरी भी दे दी है।
हाईकोर्ट ने पति की तरफ से दी जानेवाली मानसिक क्रूरता के आधार पर इस जोड़े को तलाक की मंजूरी दे दी। न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बिना किसी भावनात्मक संबंध के पति के भौतिकवादी रवैये से पत्नी को मानसिक पीड़ा और आघात पहुंचा है, जो उसके साथ क्रूरता के लिए पर्याप्त है।
न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने भी कहा कि आम तौर पर हर विवाहित महिला की इच्छा होती है कि वह एक परिवार शुरू करे, हालांकि, वर्तमान मामले में, पति को “शादी जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है, बल्कि उसकी दिलचस्पी केवल पत्नी की आय में है”। कोर्ट ने एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने पत्नी की तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को भंग कर दिया था।
पत्नी इस आधार पर तलाक मांग रही थी, कि उसका पति बेरोजगार है, शराबी है और उसका शारीरिक शोषण करता है। इसके साथ ही हमेशा पैसे की मांग करता है। जानकारी के अनुसार शादी के समय दोनों पक्ष गरीब थे। जब शादी हुई तो लड़की की उम्र 13 साल और लड़के की उम्र 19 साल थी। शादी के बाद पति ने पत्नी को छोड़े रखा और अपने घर नहीं लाया। पति ने हमेशा उसका तिरस्कार किया। लेकिन जब पत्नी की नौकरी दिल्ली पुलिस में हो गई तो पति का रवैया बदला और वो उसे अपने घर ले आया।
हालांकि इसके बाद भी दोनों के बीच में दूरी बनी रही। पति बेरोजगार था और पत्नी के पैसे पर जीवन जी रहा था। इतना ही नहीं पति शराब भी पीता था। हमेशा पत्नी को पैसे के लिए तंग करता था। पति ने इस आधार पर तलाक का विरोध किया कि उसने महिला की शिक्षा का खर्चा उठाया, जिससे उसने नौकरी हासिल की। इस पर अदालत ने कहा कि चूंकि पत्नी 2014 तक अपने माता-पिता के साथ रह रही थी, इसलिए “जाहिर है कि उसके रहने और पालन-पोषण का सारा खर्च उसके माता-पिता ने ही वहन किया होगा”।