दुनियाभर में अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने 30 अप्रैल, 1945 को गोली मारकर खुदकुशी कर ली थी। हिटलर के मरते ही उनके अधिकतर नजदीकी लोगों ने आत्महत्या करनी शुरू कर दी थी। उन्हीं में से हिटलर का साथी जोसेफ गोएबल्स भी था। गोएबल्स और उनकी पत्नी मागदा ने अपने छह बच्चों को जहर देकर आत्महत्या की थी।

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दरअसल, हिटलर की मौत की खबर जर्मनी के लोगों को एक मई की रात में 10 बजे के बाद दी गई थी। जर्मनी के लोगों को बताया गया कि हिटलर लड़ाई में लड़ते हुए मारा गया, जबकि उसकी मौत के बाद उसके शव को चांसलरी के बगीचे में पेट्रोल डालकर जला दिया गया था। हिटलर की मौत के बाद उनके करीबी भी उसी डर से गुजर रहे थे, जिसके चलते हिटलर ने आत्महत्या की थी।

हालांकि, हिटलर के कुछ करीबी साथियों ने मध्यस्थों के जरिये सोवियत सेनाओं से संपर्क साधा लेकिन बात बन नहीं सकी। सोवियत सेना की तरफ से कहा गया था कि बिना शर्त आत्मसमर्पण ही मान्य होगा। ऐसे में हिटलर के साथी रहे जोसेफ गोएबल्स ने आत्महत्या की योजना बना ली। गोएबल्स ने भी हिटलर की तरह ही जान देना जरूरी समझा क्योंकि उसे भी मृत्यु के बाद शव के साथ बर्बरता किए जाने का संदेह था। जैसा इटली के तानाशाह मुसोलिनी के साथ हुआ था।

जोसेफ गोएबल्स ने एक डॉक्टर की मदद से अपने छह बच्चों को बेहोशी का इंजेक्शन दिलवा दिया। ये सभी बच्चे 4 साल से 12 साल के थे। इसके बाद गोएबल्स की पत्नी मागदा ने इन बच्चों के मुंह में एक-एक करके सायनाइड की कुछ बूंदे डाल दी। कुछ ही क्षणों में सभी बच्चों की मौत हो गई। इसके बाद रोते हुए मागदा अपने पति जोसेफ गोएबल्स के पास पहुंची।

रात को साढ़े आठ बजे जोसेफ गोएबल्स ने अपनी वर्दी पहनी, दस्ताने पहने और टोपी लगाई। वह सीढ़ियों से अपनी पत्नी मागदा के साथ बंकर से बाहर आए। फिर उन्होंने सायनाइड के कैप्सूल को चबा लिया, सेकेंडों में उनकी मौत हो गई। बाद में सोवियत सैनिकों ने उनके शरीर पर दो-दो बार गोलियां चलाईं ताकि पता लग सके कि मौत हुई या नहीं। इसके बाद उनके शवों में आग लगा दी गई।