अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो चुका है। अब वहां की सत्ता का मालिक भी तालिबान ही है। तालिबान के डर से हजारों लोग देश छोड़ कर भाग चुके हैं या भागने की कोशिश में हैं। हालांकि इस बार तालिबान का स्वरूप पहले से बदला हुआ दिख रहा है।

90 के दशक में तालिबान का जब उदय हुआ और उसने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया तो उसका वहशीपन ऐसा था कि लोगों का समर्थन उसे कभी मिल नहीं पाया। उस दौर में तालीबान बंदूक के जोर पर शासन तो कर रहा था लेकिन जन समर्थन उसे कभी हासिल नहीं हुआ। शायद इसीलिए इस बार तालिबान हिंसा का कम सहारा लेता दिख रहा है। तालिबान की इस बार कोशिश है कि उसे जनसमर्थन मिल जाए ताकि उसकी सत्ता हमेशा बरकरार रहे।

इस बार तालिबान अपने आप को उस छवि से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा है जो उसे आतंकवादी संगठन के रूप में दिखाती रही है। अब वो दुनिया के सामने एक ऐसी राजनीतिक शक्ति के रूप में अपने आप को पेश करने की कोशिश कर रहा है, जो जनता पर जुल्म, नहीं प्यार करता है।

हालांकि जानकार इसे एक ढ़ोंग ही बता रहे हैं। काबुल में बैठे तालिबान के नेता भले ही अफगानों के लिए ‘आम माफी’ की घोषणा कर चुके हों, लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई की बात कर रहे हों, लेकिन जमीनी स्थिति पर तालिबानी लड़ाके जुल्म ढ़ा ही रहे हैं। कहीं टाइट कपड़े पहने पर लड़की को गोली मारी जा रही है तो कहीं जबरदस्ती शादी की जा रही है।

काबुल से आती तस्वीरें और वीडियो दिखाते हैं कि तालिबान लड़ाके उन महिलाओं और बच्चों को पीटने के लिए नुकीले सामान का इस्तेमाल कर रहे हैं जो देश छोड़ने के लिए काबुल हवाईअड्डे में घुसने की कोशिश कर रहे हैं।

वीडियो में दिखाया गया है कि हमलावरों ने भीड़ को हवाई अड्डे से वापस खदेड़ने के लिए गोलियां भी चलाईं। लॉस एंजेलिस टाइम्स के रिपोर्टर मार्कस याम ने बुधवार को ट्विटर पर कुछ तस्वीरें पोस्ट कीं और साथ में लिखे टेक्स्ट में दावा किया कि इस हमले में एक महिला और उसके बच्चे सहित कम से कम आधा दर्जन लोग घायल हो गए हैं।

1996 में जब तालिबानियों ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा जमाया तो सख्ती से शरिया कानून को पूरे देश में लागू कर दिया। पुरुषों को जहां इसमें आजादी मिली, वहीं महिलाओं और अल्पसंख्यकों का जीवन नर्क से भी बदतर हो गया। लड़कियां ना तो स्कूल जा सकती थी, ना पश्चिमी कपड़े पहन सकती थी। जब भी कोई महिला शरिया कानून के खिलाफ जाती तो उसे पत्थर से मार-मार कर मार दिया जाता था।

1997 आते-आते तालिबान और मजबूत हो गया। मजबूत होते ही उसने वहां रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों (हिन्दू और सिख) के लिए कई नए नियम ले आए। अल्पसंख्यकों के लिए घर के बाहर पीले रंग का बोर्ड लगाना अनिवार्य था। उन्हें बाहर निकलने पर पीले कपड़े ही पहनने पड़ते थे। मुस्लिम समाज के लोगों से एक फासले पर चलने का आदेश था। वो किसी मुस्लिम के घर नहीं जा सकते थे और ना ही कोई मुस्लिम समाज का व्यक्ति उनके घर आ सकता था।

हाल ये हुआ कि तालिबान ने त्रस्त होकर अल्पसंख्यक समुदाय के साथ-साथ हजारों मुसलमान समाज के लोग भी पलायन करने लगे। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 1996 से लेकर 2001 के बीच में 15 बड़े नरसंहार हुए। इस नरसंहार में सैकड़ों लोगों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार इन कत्लेआम में पाकिस्तानी और अरब लड़ाके शामिल होते थे।

ये अरब लड़ाके बडे़-बडे़ चाकू लेकर गांवों में आते और बेरहमी से लोगों का गला काट देते। कई बार तो लोगों के खाल भी खींच लिये जाते थे। 1996 में जब अफगानिस्तान में भूखमरी से लोगों को मरने की नौबत आने लगी तो संयुक्त राष्ट्र ने हजारो टन भोजन भेजा। तब तालिबान ने ये भोजन लेने से मना कर दिया। इस दौर में तालिबान मानव तस्करी भी जमकर करता था। औरतों, लड़कियों को गुलाम बनाकर उन्हें बेचा जाने लगा। हजारों महिलओं ने इस डर से खुदकुशी कर ली।

तालिबान के नब्बे वाले दौर को देखकर ही अफगानिस्ता के नागरिक डर के मारे देश छोड़कर भाग रहे हैं। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में बुर्कों की मांग बढ़ गई है। पिछले 20 साल में अफगानिस्तान में बहुत विकास कार्य हुआ था। इन विकास कार्यों में भारत ने भी अपने अरबों डॉलर लगाए थे। अब तालिबान के आने से भारत के ये निवेश खतरे में आ गए हैं।