अफगानिस्तान से भागते लोगों का तस्वीरें वहां की भयावहता की कहानी बयां कर रही है। लोगों के मन में तालिबान का खौफ इस कदर है कि वो अपने ही मुल्क से भाग जाना चाहते हैं। दुनिया में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब लोग अपने मुल्क, घरबार छोड़कर नई जिंदगी की तलाश में भटकने को मजबूर हुए हों।
यही कारण है कि इस समय दुनिया में 8 करोड़ से ज्यादा लोग शरणार्थी के रूप में जीवन जीने को मजबूर हैं। UNHRC के आंकड़ों की माने तो हर मिनट औसतन 20 लोग युद्ध, आतंकवाद, हिंसा, आपदाओं और अन्य कारणों से अपना घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर होते हैं। वास्तविक आंकड़ा शायद और ज्यादा हो सकता है।
ये संख्या भी तब है, जब कई देशों ने हजारों शरणार्थियों को अपने यहां की नागरिकता दे दी है। शरणार्थी संकट ज्यादातर युद्ध, गृह युद्ध, देशों का विभाजन और भूखमरी के कारण होता है। कभी लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में तो कभी जिंदगी बचाने के कारण अपना मुल्क छोड़कर विश्व के मानचित्र पर भटकने लगते हैं।
ऐसा कई बार हुआ है जब हजारों लोगों को एक ही झटके अपना मुल्क और घरबार छोड़ना पड़ा हो। चाहे वो बर्मा से रोहिंग्या का पलायन हो, सीरिया में गृहयुद्द के कारण पलायन हो, इराक से पलायन हो या फिर पूर्वी पाकिस्तान से पाकिस्तानी सेना से जान बचाकर भागे लोग हों। इन घटनाओं के समय देश और कारण भले ही अलग-अलग हो लेकिन हर घटनाओं में लोगों को अपना घरबार छोड़ना ही पड़ा है।
बर्मा (म्यांमार) से रोहिंग्या का पलायन
अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय वर्षों से म्यांमार में रह रहे थे, लेकिन उन्हें वहां नागरिकता का अधिकार नहीं था। 2017 से पहले म्यांमार में लगभग 8 लाख रोहिंग्या रहते थे।
लेकिन वहां की सरकार इन्हें अपना नागरिक नहीं मानती थी। 2017 में रोहिंग्या के खिलाफ कत्लेआम की बड़ी घटना हुई। सैंकड़ों लोग मारे गए, रोहिंग्या के गांव उजाड़ दिए गए, महिलाओं-बच्चों के साथ अत्याचर हआ और तब बड़ी संख्या में लोग जान बचाने के लिए म्यांमार से भागकर पड़ोसी देशों- बांग्लादेश, भारत, थाईलैंड में शरण लेने को मजबूर हो गए। यूएन ने तब इसे “नस्ली सफ़ाया” करार दिया था।
यहूदी नरसंहार
जर्मनी में जब एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों को खिलाफ अत्याचार करना शुरू किया तो जर्मनी से हजारों यहूदी जान बचाने के लिए छुपते-छुपाते भागने लगे। हिटलर ने इस दौरान सैंकड़ों यहूदियों की जान ले ली। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब यहूदियों ने इजराइल को एक अजाद बना तो फलस्तीनियों का पलायन वहां से शुरू हो गया। इस तरह दुनिया के नक्शे में एक और शरणार्थी समस्या का उदय हो गया। अरबों की लड़ाई के बाद शुरू हुआ फलस्तीनी लोगों का पलायन आज भी जारी है।
बांग्लादेश की आजादी
भारत विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में जाने जाना वाला यह हिस्सा अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। 1971 में जब इस देश का उदय हुआ तो इसे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। पाकिस्तान शासित इस इलाके के लोगों के पास पाकिस्तान की नागरिकता तो थी, लेकिन इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराजगी थी। इसी दोयम दर्जे के व्यवहार के कारण पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए चुनाव में अवामी लीग ने जबर्दस्त जीत दर्ज की, लेकिन शेख को प्रधानमंत्री बनाए जाने के बजाय उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। यहीं से बांग्लादेश की कहानी शुरू होती है।
पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने कार्रवाई शुरू कर दी। नरसंहार शुरू हो गया, सैंकड़ों लोगों को मार दिया गया और लाखों को जेल के अंदर डाल दिया गया। हाल ये हुआ कि लोग पूर्वी पाकिस्तान से जान बचाकर भारत की सीमा में आने लगे। पहले तो कुछ लोग आए, फिर ये संख्या दिन दुगनी और रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ने लगी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विश्व का ध्यान इस समस्या की ओर दिलाया, लेकिन विश्व समुदाय इस संकट से बेखबर रहा। तब इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी के लोगों की ट्रेनिंग देकर बाग्लादेश की अजादी की लड़ाई के लिए उन्हें तैयार करवाना शुरू कर दिया। आखिरकार भारत को पूर्वी पाकिस्तान पर हमला कर उसे आजाद कराना पड़ा, तब जाकर इस समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिला।
सीरिया से पलायन
मध्य पूर्व का यह देश दशकों से गृहयुद्ध की आग में जल रहा है। अशद सरकार अपने ही देश में सत्ता बचाने की लड़ाई लड़ रही है। गृहयुद्ध के कारण इस देश की आधी अबादी घर छोड़कर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। लगभग 30 लाख सीरियाई लोग दूसरे देशों में शरण ले रखे हैं। इसके अलावा 75 लाख से ज्यादा अपने ही देश में बेघर की जिंदगी गुजार रहे हैं। गृहयुद्ध की आग में जलते इस देश से रोज लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में देश से भागने की फिराक में रहते हैं।
कुवैत हमला
1990 में इराक ने कुवैत को अपना हिस्सा मानते हुए हमला कर दिया। सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराकी बलों ने कुवैत पर आसानी से कब्जा कर लिया। कुवैत पर इराक के कब्जे के बाद वहां से हजारों लोग पलायन करने लगे। यहां सिर्फ भारत के ही हजारों लोग फंसे थे। ये लोग वहां सालों से रह रहे थे, लेकिन जब इराक ने कुवैत पर कब्जा कर लिया तो रातों-रात इन्हें कुवैत छोड़ना पड़ा। काफी कोशिशों के बाद 1 लाख 70 हजार भारतीयों को एयरलिफ्ट करके वहां से निकाला गया था।
भारत विभाजन
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसके दो टुकड़े हुए। एक भारत बना, दूसरा धर्म के आधार पर पाकिस्तान। पहले तो लोगों ने अपनी मर्जी से दोनों मे से किसी एक मुल्क को चुना। किसी ने भारत को चुना तो किसी ने पाकिस्तान को। हजारों लोग अपने घर बार छोड़कर पलायन कर गए, लेकिन स्थिति तब बिगड़ गई, जब विभाजन के बाद पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं और सिखों के साथ नरसंहार शुरू हो गया। हजारों लोग जान बचाने के लिए पाकिस्तान से भागकर हिन्दुस्तान आने लगे। दरिंदगी की हद तब हो गई, जब जान बचाकर भाग रहे लोगों के साथ भी अत्याचार किया गया। उन्हें मार दिया गया, औरतें के साथ बलात्कार किया गया। पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के साथ अत्याचार की खबरें सुनकर भारत में भी दंगे होने लगे। जिसके बाद दोनों मुल्कों से लाखों लोगों को विस्थापन करना पड़ गया।
तिब्बत पर चीनी आक्रमण
1950 में चीन ने तिब्बत को अपना हिस्सा मानते हुए हजारों सैनिकों को तिब्बत में तैनात कर दिया। 1959 में एक असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ तिब्बत छोड़ कर भाग निकले और भारत में शरण लिया। 17 मार्च 1959 को दलाई लामा को अपने सहयोगियों के साथ तिब्बत छोड़ना पड़ा और पैदल ही हिमालय के दुर्गम रास्तों को पार कर 15 दिनों बाद वो भारत पहुचे थे। तब से लेकर अबतक दलाई लामा वापस अपने देश तिब्बत नहीं जा पाए हैं। उनके साथ हजारों तिब्बती नागरिक भी निर्वासित जिंदगी गुजार रहे हैं।
ये तो कुछ ऐसी घटनाएं है जिनमें लाखों लोग एक साथ पलायन को मजबूर हुए थे। दरअसल पहलायन की कहानी हर युद्ध और महामारी के बाद शुरू हो जाती है। कभी-कभी हजारों किलोमीटर इन शरणार्थियों को पैदल चलना पड़ा है तो कभी छोटी-छोटी नावों के सहारे समुद्र पार करना पड़ता है। इस दौरान अक्सर सैकड़ों लोगों की मौत भी हो जाती है।