हाजी मस्तान (Haji Mastan) की मौत भले ही 1994 में हो गई हो, लेकिन उसकी कहानियां और उस पर विवाद आज भी जारी है। हाजी मस्तान डॉन था या स्मगलर इस पर आज भी सवाल उठते रहे हैं। इतिहास में हाजी मस्तान का नाम बिना एक भी गोली चलाए मुंबई का किंग और समुद्र का बेताज बादशाह के तौर पर दर्ज है।

अभी तक हाजी मस्तान के बारे में यही बताया जाता रहा है कि वो मुम्बई आने के बाद बंदरगाह पर कोली का काम किया था, लेकिन किताब अंडरवर्ल्ड बुकलेट में उनकी औलाद ने दावा किया है कि अब्बा गोदी में काम करने से पहले साइकिल की दुकान चलते थे। जहां गोदी में काम करने वाले मजदूर किराये पर साइकिल लेते थे।

पायधुनी जैन मंदिर के पास मस्तान की साइकिल दुकान थी। उन दिनों इसका किराया 25 पैसे प्रति घंटा था। यह 50 साल पुरानी बात होगी। वहां पंचर बनाए जाते थे और साइकिल की छोटी-मोटी मरम्मत का कार्य किया जाता था। यह सारा काम मस्तान ही करता था। उस वक्त मस्तान की उम्र 18 साल से कम रही होगी।

हाजी मस्तान (Haji Mastan) इतनी इमानदारी से काम करता था कि जो भी एक बार उसके पास आता, उसका पक्का ग्राहक बन जाता। उस दुकान पर आने वाले ज्यादातर मजदूर ही थे। ये दुकान मस्तान और उसके पिता मिलकर चलाते थे, लेकिन इन्हें कुछ दिनों बाद ही दिक्कत होने लगी। दरअसल गोदी में काम करने वाले मजदूर के पास इतने पैसे होते नहीं थे कि वो रोज साइकिल किराये पर लेते।

आमदनी कम होने पर मस्तान के पिता ने दुकान एक मराठी को किराये पर दे दी और खुद गोदी में काम करने लगे। हाजी मस्तान पर और बोझ आ गया। मस्तान बंदरगाह पर भाप से चलने वाले क्रेन के लिए कोयला झोकने का काम करने लगा। जिसे यहां कोली कहा जाता था।

गोदी में करने के दौरान मस्तान को समझ आ गया था कि इस काम से उसका और उसके परिवार का पेट नहीं भर सकता है। इसके बाद हाजी मस्तान (Haji Mastan) बखिया बंधु की शरण में पहुंच गया। बखिया बंधु उस समय स्मगलिंग में नंबर वन थे और मस्तान से पहले के समुद्र के बादशाह भी।

बखिया बंधु के पास ही हाजी मिर्जा मस्तान (Haji Mastan) ने तस्करी के गुण सीखे और जब बखिया बंधु में बड़े भाई की मौत के बाद जब जोड़ी टूटी तो वो तस्करी के धंधे में उतर गया। इसके बाद बखिया बंधु (Bakhiya Bandhu) के दूसरे भाई की मौत हो गई तो मस्तान मुम्बई में स्मगलिंग का किंग हो गया और समुद्र का बेताज बादशाह भी।