अफगानिस्तान में तालिबान अब सरकार बनाने की तैयारी कर रहा है। अपने कई वरिष्ठ कमांडरों को तालिबान अब सरकार में नई भूमिकाएं तय करने में लगा है। इसी क्रम में ‘काबुल का कसाई’ (Butcher of Kabul) से प्रसिद्ध गुलबुद्दीन हिकमतयार (Gulbuddin Hekmatyar) का नाम भी सामने आ रहा है। वो पहले तालिबान का दुश्मन था और आज दोस्त बन गया है।

अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज़्ब-ए-इस्लामी गुलबुद्दीन (HIG) पार्टी के प्रमुख गुलबुद्दीन हिकमतयार हमेशा देश की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा रहा है। तालिबान की सरकार के गठन से पहले हेकमतयार का रोल महत्वपूर्ण दिख रहा है। हेकमतयार को उसकी दरिंदगी के लिए लोग ‘काबुल का कसाई’ (Butcher of Kabul) भी कहते हैं।

हेकमतयार का जंग के साथ चोली-दामन का साथ रहा है। काबुल का कसाई सबसे पहले सोवियत संघ के खिलाफ लड़ा। फिर तालिबान के खिलाफ और आखिर में अमेरिका के साथ भी जंग लड़ा।

सत्ता में खुद रहे या तालिबान या फिर अमेरिका समर्थित सरकार, हेकमतयार (Gulbuddin Hekmatyar) हमेशा से अफगानिस्तान के महत्वपूर्ण लोगों में से एक रहा है। कभी जंग का नेतृत्व किया तो कभी सरकार का। गुलबुद्दीन हिकमतयार का जन्म 1949 में अफगानिस्तान के गजनी शहर में हुआ था। यह 1968 में सैन्य अकादमी के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में कट्टर धार्मिक होने के कारण उसे वहीं से निकाल दिया गया था।

यहां से निष्कासित होने के बाद हेकमतयार ने काबुल विश्वविद्यालय में दाखिल ले लिया। यहां से उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। एक तरफ पढ़ाई करता रहा तो वहीं दूसरी तरफ उसका धर्म के प्रति भी रूझान बढ़ते रहा। पढ़ाई खत्म करते-करते गुलबुद्दीन काफी कट्टर हो गया था।

काबुल विश्वविद्यालय में ही हिकमतयार, अहमद शाह मसूद से मिला। जिसके साथ बाद में लंबे समय तक हिकमतयार की दुश्मनी भी रही। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार 1970 के दशक में मसूद के साथ हिकमतयार और बाकी कट्टरपंथी भी अफगानिस्तान सरकार से डरकर पाकिस्तान भाग गए थे।

उस दौर में अफगानिस्तान सरकार ने कट्टरपंथियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई की थी। 1970 के दशक में एक ऐसा समय आया जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध होने लगा। उस समय अफगानिस्तान में सोवियत समर्थक शासन के खिलाफ इस्लामवादी विद्रोह शुरू हो गया था। अमेरिका ने इसे अवसर के रूप में देखा और मुजाहिदीन को फंडिंग करना शुरू कर दिया।

हिकमतयार (Gulbuddin Hekmatyar) भी मौका देखकर अमेरिका के साथ हो लिया और सोवियत खिलाफ जंग में उतर गया। उस समय तक, हेकमतयार अपनी दक्षता और चतुराई के कारण अमेरिका और पाकिस्तान का पसंदीदा बन चुका था। हेकमतयार पर अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के दौरान हजारों लोगों की हत्या करने का आरोप लगा था। लोग उसे ‘काबुल का कसाई’ (Butcher of Kabul) कहने लगे थे। हेकमतयार, मसूद के खिलाफ भी इसी दौर में गया। इस दौरान मसूद को पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया गया था। इसमें भी इसी का हाथ बताया जाता है।

1990 के दशक में, हिकमतयार ने थोड़े समय के लिए दो बार अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में भी कार्य किया। उसने अफगानिस्तान में सरकार बनाई और मई 1996 में प्रधानमंत्री बना। लेकिन जब तालिबान ने सितंबर 1996 को काबुल पर नियंत्रण कर लिया तो ये डरकर पंजशीर भाग गया।

पंजशीर में भी हिकमतयार ज्यादा दिनों नहीं रहा और वहां से ईरान भाग गया। 9/11 के हमले के बाद अमेरिका के डर से वो इरान से भागा और अपना पसंदीदा ठिकाना पाकिस्तान पहुंच गया।

हितमतयार ने 2010 तक फिर खुद को खड़ा किया और अमेरिका के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख चेहरा बन गया। तालिबान और अल-कायदा के साथ मिलकर काबुल का कसाई भी इस जंग में कूद पड़ा।

अब जब तालिबान अफगानिस्तान में काबिज हो चुका है। सरकार बनाने की तैयारी कर तो हितमतयार (Gulbuddin Hekmatyar) की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है।