साल 1928 में एक फिल्म आई थी ‘राजा हरिशचंद्र’…यह वह फिल्म थी जिससे ललिता पवार ने एक्टिंग में डेब्यू किया था। इसके बाद धीरे-धीरे ललिता पवार ने कई फिल्मों में काम किया और राजपकपूर की फिल्म में भी नजर आईं। 18 अप्रैल को जन्मीं ललिता पवार का असली नाम अंबा था। कहा जाता है कि ललिता पवार कभी स्कूल नहीं गईं क्योंकि उस समय लड़कियों का स्कूल जाना मना होता था।
लेकिन आज हम बात ललिता पवार की फिल्मों की नहीं बल्कि उनके साथ हुए एक हादसे और उनकी मौत से जुड़ी एक भयानक सच्चाई की। ललिता पवार अपने दौर की बेहतरीन अदाकार थी। वे कई फिल्मों में अपने स्टंट खुद ही किया करती थी। वे दमदार अदाकार होने के साथ एक अच्छी गायिका भी थी। अपने अदायगी से उन्होने ना सिर्फ दर्शकों का दिल जीता बल्कि निर्माता निर्देशक की भी चहेती बन गई। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुए हादसे ने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी। ये हादसा साल 1942 में फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ की शूटिंग सेट पर हुआ था।
दरअसल फिल्म की शूटिंग के दौरान एक सीन में अभिनेता भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था। भगवान दादा ने ललिता को इतनी जोर का थप्पड़ मारा की वे जमीन पर गिर पड़ी थीं। उन्हें तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया जहां वो कोमा में चली गईं।
इलाज के दौरान वे ठीक तो हो गई मगर उनकी दाहिनी आँख में लकवा मार गया। समय के साथ लकवा तो ठीक हो गया मगर हमेशा के लिए उनकी आँख सिकुड़ गई जिसकी वजह से उनका चेहरा खराब हो गया। ललिता पवार ने फिल्म ‘अनाड़ी’ (1959) में दयावान मिसेज डीसा, ‘मेम दीदी’ (1961) की मिसेज राय और ‘श्री 420’ (1955) में ‘केले वाली बाई’ का किरदार निभाया था।
फिल्म गृहस्थी में ललिता पवार ने मां का किरदार निभाया, जो कि लोगों को बहुत ही ज्यादा पसंद आया। 90 के दशक में आई रामायण में ललिता पवार ने मंथरा का किरदार निभाया। जिससे उनको सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। बताया जाता है कि ललिता पवार कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं।
साल 1988 में ललिता पवार की दर्दनाक मौत हुई थीं। दरअसल ललिता के बेटे अपने परिवार के साथ मुंबई में रहते थे। एक दिन उन्होंने अपनी मां को फोन किया। लेकिन मां ने फोन नहीं उठाया। इसके बाद जब उनके बेटे अपनी मां को देखने के लिए घर आए तब उनकी लाश घर के अंदर मिली थी। दरवाजा तोड़ कर पुलिस ललिता के घर में घुसी थी। पता चला था कि उनकी लाश तीन दिन से घर में ही थी।
