बिहार पुलिस अपने ही कॉन्सटेबल को नहीं पहचानती है। बिहार में पुलिस का यह कारनामा काफी सुर्खियां बटोर रहा है। यहां पटना पुलिस अपने एक कॉन्सटेबल को नहीं पहचान सकी और उसकी लाश को लावारिस समझ उसका अंतिम संस्कार तक कर दिया। जानकारी के मुताबिक बिहार पुलिस में कॉन्सटेबल अशोक पासवान की प्रतिनियुक्ति 16 जुलाई को सचिवालय के गेट पर हुई थी।

लेकिन इस दिन पुलिस लाइन से कमान लेने के लिए निकले अशोक प्रतिनियुक्ति स्थल पर नहीं पहुंच सके थे। 24 जुलाई को अशोक पासवान के बेटे ने बुद्धा कॉलोनी थाने में अपने पिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। यहां हैरानी की बात यह भी है कि बिहार पुलिस का कॉन्सटेबल लगभग 8 दिनों तक अपनी ड्यूटी पर नहीं पहुंचा और पुलिस ने उनके बारे में पता लगाने की जहमत तक नहीं उठाई।

इधर 17 जुलाई की सुबह गांधी मैदान थाने को गांधी मैदान के गेट नंबर-5 के पास स्थित सामुदायिक शौचालय के नजदीक एक शव पड़ा मिला। पुलिस की कस्टडी में यह शव करीब 72 घंटे तक रखा रहा। इसके बाद पुलिस ने शव को लावारिस माना और शव का पोस्टमार्टम करा उसका दाह-संस्कार कर दिया।

30 जुलाई को बुद्धा कॉलोनी थानाध्यक्ष आरके सिंह एक Whats app ग्रुप को स्क्रॉल कर रहे थे तब उनकी नजर अशोक पासवान के मृत फोटो पर पड़ी। थानाध्यक्ष ने फोटो की पहचान अशोक पासवना के बेटे से करवाई और तब जाकर खुलासा हुआ कि गांधी मैदान थाने ने जिस युवक की लाश को लावारिस मान उसका दाह संस्कार किया है वो लावारिस नहीं बल्कि बिहार पुलिस का ही कॉन्सटेबल अशोक पासवान था जो 16 जुलाई से लापता था।

इससे साफ जाहिर है कि शव मिलने के बाद पटना पुलिस ने गहराई में जाकर शव के शिनाख्त की कोशिश नहीं की। इस मामले के सामने आने के बाद हड़कंप मच गया है। एसएसपी गरिमा मलिक ने इसपर सफाई देते हुए कहा कि मृतक की तस्वीर सभी जिला और रेल थानों में भेजी गई थी, लेकिन जब 72 घंटे तक किसी ने उसकी पहचान नहीं की तो नियम के मुताबिक उसका दाह-संस्कार किया गया।

इधर मृतक कॉन्सटेबल के परिवार वालों का कहना है कि अगर पटना पुलिस ने समय रहते शव की पहचान करवाई होती तो वो घर के सदस्य का अंतिम संस्कार करने से नहीं चूकते। अशोक पासवान मूल रूप से अररिया के रहने वाले थे। (और…CRIME NEWS)