दुनिया के लगभग सभी देशों में अपराध के नए-पुराने किस्से रहे हैं। अधिकतर अपराधों को अंजाम देने वाले का मकसद एक ही रहा कि किसी भी तरह से कानून की नजर से बचा जा सके। कुछ ऐसा ही साल 1978 में हुआ, जिसमें एक लेखक व बीबीसी के पत्रकार रहे जॉर्जी मार्कोव को छाते के इस्तेमाल से लंदन में मार डाला गया था। इसे अंब्रेला मर्डर भी कहा गया।
शायद आपको लग रहा हो कि यह कैसे संभव है लेकिन ऐसा हुआ था। फिर इस अपराध के पीछे किसी को पकड़ा भी नहीं जा सका। यह घटनाक्रम शीत युद्ध (कॉल्ड वॉर) के समय का है। जॉर्जी मार्कोव, बुल्गारिया की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार के विरोधी होने के साथ-साथ लेखक थे और बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के लिए भी काम करते थे।
शीत युद्ध के समय विरोध के चलते जॉर्जी मार्कोव, कम्युनिस्टों की निशाने पर रहे। कई बार कम्युनिस्टों की तरफ से उन्हें मारने का आदेश भी जारी हुआ था। जॉर्जी मार्कोव, लंदन में वाटरलू ब्रिज पर एक बस का इंतजार कर रहे थे; तभी उन्हें अपनी जांघ में एक तेज झटका महसूस किया और देखा कि एक आदमी छाता उठा रहा है। उस समय सब ठीक था, लेकिन अगले तीन दिनों में तेज बुखार आया और फिर 11 सितंबर 1978 को मार्कोव का निधन हो गया।
इस मामले में जब ब्रिटेन सरकार के रासायनिक और जैविक हथियार प्रयोगशाला (जर्म वॉरफेयर सेंटर) के वैज्ञानिकों की मदद से पोस्टमॉर्टम हुआ तो पता चला कि, उन्हें एक छोटी गोली से मारा गया था; जिसमें रिकिन नामक जहर की 0.2 मिलीग्राम खुराक थी। इसे छाते की पिन में लगाया था, मार्कोव की हत्या का पता केवल इसलिए चल पाया; क्योंकि जहर ले जाने वाली गोली पूरी तरह से नष्ट नहीं हुई थी।
जॉर्जी मार्कोव की मौत के बाद इंटरपोल, ब्रिटिश और बल्गेरियाई अधिकारियों ने एक साथ मिलकर जांच की फिर भी उनके हत्यारे को कभी पकड़ा नहीं गया। इटली के एक जासूस पिकेडिली पर आरोप लगा था पर उसने मुस्कुराते हुए सॉरी कह दिया और कहा था मेरा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, पिकेडली पर मार्कोव को मारने का प्रयास करने का आरोप पहले भी लगा था। इस हत्या से पहले भी मार्कोव को मारने की दो बार कोशिश हो चुकी थी।