कहा जाता है कि ‘उगते सूरज को सब सलाम करते हैं’। पर आम जनमानस को तकलीफ तब होती है जब व्यक्तिवाद, गरीबी और पिछड़ेपन से लड़ने का दम भरने वाले राजनेताओं को दैवीय चोला ओढ़ा दिया जाता है। ऐसा प्रचारित किया जाने लगता है कि जैसे अमुक नेता यहां न जन्मा होता तो इस युग और समाज को कितना बड़ा नुकसान हो जाता। यूपीए सरकार के जमाने में ‘दस जनपथ’ देश की राजनीति का सत्ता-केंद्र तो बन गया था, पर गांधी परिवार के तथाकथित वफादार और कई चाटुकार भी उनकी वैसी दैवीय छवि नहीं बना सके, जैसी भाजपा के नेताओं ने सिर्फ आठ महीने में नरेंद्र मोदी की बना दी है और इसका दुराग्रहपूर्ण प्रचार भी हो रहा है। नौ महीने पहले जिस प्रकार लोकसभा चुनावों के दौरान ‘हर हर महादेव’ से गूंजने वाले काशी में ‘हर हर मोदी’ का शोर मचाया गया, उससे आशंका हो चली थी कि भारतीय राजनीति को एक नया देवता मिलने वाला है और वह ‘गंगा के बुलावे’ पर वहां ‘अवतरित’ हुआ है। मजाक में पूछा जाए तो गंगा मैया ने किस माध्यम से अपना संदेश पहुंचाया था, इसका खुलासा अब तक नहीं हुआ है! अब कहा नहीं जा सकता कि अगले किसी चुनाव में उज्जैन वाले ‘महाकाल बाबा’ के ‘बुलावे’ की भी खबर आ जाए!
समाज में धर्म के उद्धारकों का दोहरापन तब देखने को मिला जब ‘हर हर मोदी’ के नारे पर विवाद होने पर उन्होंने ‘हर हर’ पर महादेव का कॉपीराइट न होने की बात तक कह दी! लेकिन किसी दलित के मंदिर-प्रवेश के मसले पर तरह-तरह से शुद्धीकरण कराने के उपाय बता कर कथाओं में वर्णित उन्हीं महादेव के समानता के सिद्धांत को धता बताया जाता है, जिनके परिवार में मोर, सांप, चूहा, बैल, शेर सब साथ-साथ प्रेम से रहते हैं। ताजा उदाहरण यह है कि भाजपा के एक नेता साक्षी महाराज ने एक हिंदी समाचार चैनल को दिए अपने साक्षात्कार में प्रधानमंत्री मोदी को ऐसा देव-पुरुष बताया, जिसके भीतर ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां समाहित हो गई हैं और वे जो चाहें वह कर सकते हैं। शायद वाकई वे दैवीय शक्तियों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। आधार वर्ष में परिवर्तन कर देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर को कागजों पर भरपूर गति दी जा रही है। लेकिन ऐसे कामों के लिए किसी तरह की दैवीय छवि की आवश्यकता होगी, उसमें संदेह है।
पिछले दस माह में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वनिर्मित छवि का प्रमुख उपयोग विभिन्न राज्यों के चुनाव जीतने में किया। न तो भ्रष्टाचार में कुछ कमी दिखाई पड़ी, न महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगी, जिनकी सुरक्षा की गारंटी हर जनसभा में दी जाती थी। जिन ‘दैवीय शक्तियों’ की बात साक्षी महाराज और उनके जैसे नेता कर रहे हैं, उनका उपयोग क्या महिलाओं को सुरक्षा और देश के एक लाख से भी ज्यादा प्यासे गांवों को साफ पानी मुहैया कराने जैसी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाएगा या उन मुद्दों को दफ्न करने के लिए?
आम जनता को देश चलाने वाले कुशल प्रशासक की जरूरत है, न कि किसी ‘देवता’ की। यों भी हिंदू धर्म में तथाकथित रूप से तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की कल्पना मौजूद है, जिन सबके नाम तो शायद उन धर्मगुरुओं को भी नहीं पता होंगे, जो इनके सबसे बड़े उद्धारक बन कर वातानुकूलित आश्रमों में आनंद उठा रहे हैं! इसलिए प्रधानमंत्री से अपेक्षा है कि वे किसी नए ‘भगवान’ के रूप में सुशोभित होने के बजाय पारदर्शी निर्णय करने वाले नेता की भूमिका निभाएं।
अनुज दीप यादव
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