संदीप नाईक
जनसत्ता 2 अक्तूबर, 2014: उस दिन हम देवास के श्मशान में जब भाई की अस्थियां समेट रहे थे तो वहां तीन और परिवारों के लोग आए हुए थे। न सिर्फ उन्होंने बड़े करीने से सारी अस्थियां समेटीं, बल्कि हम सबने समेटीं। फिर हमने जगह को झाड़ू से साफ किया, साफ पानी का छिड़काव किया, फिर एक बाल्टी में पानी के साथ गोबर और गो-मूत्र मिला कर उस स्थान को स्वच्छ किया। इसके बाद कुछ अगरबत्ती जला कर उस जगह को एकदम स्वच्छ बनाने की कोशिश की, यानी हाइजिनिक किया। यानी हम उस जगह को इतना साफ कर देते हैं जिसका उपयोग अपने जीते जी हम खुद के लिए नहीं कर पाएंगे और भावना यह रहती है कि कोई दूसरी लाश आएगी तो उसे साफ जगह मिलनी चाहिए। इसलिए हम सारे लोग बिल्कुल भिड़ जाते हैं और सफाई में कोई कसर नहीं रखते। सवाल है कि क्या हम सार्वजनिक स्थलों को इसी तरह साफ नहीं रख सकते?
इसी संदर्भ में याद आया कि देश में सफाई की बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं, मीडिया में छा जाने के लिए बड़े पैमाने पर झाड़ू खरीद कर नौटंकी निभाने की रस्में अदा की जा रही हैं और जिस गांधी को मार कर ‘राजनीतिक सफाई’ की दुहाई पिछले सत्तर बरसों से दी जा रही थी, अचानक उसी गांधी को दुनिया में बेच कर और देश में दो अक्तूबर से सफाई का बड़ा काम हाथ में लिया जा रहा है। क्या मोदीजी या उनकी सरकार यह काम इतनी ही आसानी से कर पाएगी? श्मशान-सी सादगी और तन्मयता या उतने ही समर्पण से हम सड़क, शौचालय, सीढ़ियां, पार्क, सार्वजनिक वाहन, बस स्टैंड, अस्पताल, मंदिर, रेलवे स्टेशन, स्कूल-कॉलेज, कुएं, नदी, तालाब या समुद्र, जंगल, जमीन, नभ या अन्य उपयोग की सार्वजनिक जगहों को क्यों नहीं देख पाते? अगर हम इस समर्पण भाव से हर जगह को अपना मानेंगे और यह तय कर लेंगे कि हमारे बाद इसका इस्तेमाल कोई और करने वाला है तो शायद देश में सफाई का नजारा ही कुछ और होगा। बल्कि इससे आगे मैं तो यह कहूंगा कि हम क्यों यह भी मानें कि इसका उपयोग अकेले हम ही करने वाले हैं? भले ही हम न कर पाएं अपने जीवनकाल में, लेकिन कम से कम दूसरों के लिए सार्वजनिक जगहों को तो स्वच्छ रख ही सकते हैं।
मैंने तो यह तय किया है कि अब मैं यही करूंगा। मुझे किसी जगह पर काम करना हो या उसका उपयोग करना हो या नहीं, लेकिन दूसरों के लिए उस जगह को साफ रखने या छोड़ने का इंतजाम जरूर करूंगा। इसके लिए भले ही मुझे कोई भी रास्ता निकालना पड़े। बहुत साधारण-सी बात है। अगर हम सच्चे दिल से प्रण कर लें तो हमारे सामने सब कुछ साफ-सुथरा दिखने लगेगा। अपने परिसर के साथ-साथ आसपास की जगहों को साफ रखना दरअसल समूचे वातावरण को स्वच्छ रखने का इंतजाम करने जैसा है। एक जागरूक समाज सफाई को अभियान बना सकता है। इसका लाभ आखिरकार सबको मिलना है।
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