पवन रेखा

जनसत्ता 26 सितंबर, 2014: फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने अपनी एक तस्वीर को आपत्तिजनक कोण से दिखाने को लेकर एक अंग्रेजी अखबार पर अपना गुस्सा जाहिर किया। इसके बाद सोशल मीडिया पर यह मुद्दा चर्चा का विषय रहा। कुछ लोगों ने दीपिका के इस कदम की सराहना की तो कुछ को इसमें ‘पब्लिसिटी स्टंट’ नजर आया। हालांकि इस तरह की खबर प्रकाशित-प्रसारित करने वाला यह कोई इकलौता अखबार नहीं है। ऐसी खबरें हमें आए दिन देखने और पढ़ने को मिल जाती हैं। लेकिन फिल्मी दुनिया का कोई बड़ा कलाकार भी इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। उसकी वजह शायद यह है कि कोई भी सितारा मीडिया के साथ झगड़ा मोल नहीं लेना चाहता, क्योंकि उन्हें लगता है कि मीडिया अगर किनारे कर दे तो फिर लोकप्रियता कैसे मिलेगी, फिल्मों का प्रचार कैसे होगा, उनकी फिल्म कैसे चलेगी! बात इतनी-सी है कि मीडिया का विरोध करके कोई अपनी लोकप्रियता नहीं खोना चाहता। लेकिन इन सबकी परवाह को दरकिनार कर अगर कोई विरोध का स्वर ऊंचा करे तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए।

इस मामले में हद तो तब हो गई जब गलती मानने के बजाय अखबार ने ट्विटर के जरिए सफाई दी कि ‘दीपिका, हम तो आपकी तारीफ कर रहे हैं। आप बेहद खूबसूरत हैं और हम चाहते हैं कि हर किसी को इस बात का पता चले!’ क्या कोई भी व्यक्ति किसी की प्रशंसा इस तरह कर सकता है कि उससे उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचे? ऐसी भाषा का इस्तेमाल क्या किसी भी अग्रणी माने जाने वाले अखबार को शोभा देता है? जिन लोगों ने इसे दीपिका का ‘पब्लिसिटी स्टंट’ बताया, शायद उन्हें यह पता हो कि एक सेलिब्रिटी और मीडिया का चोली-दामन का साथ होता है। लेकिन किसी को किसी के आत्मसम्मान से खिलवाड़ का हक नहीं है। दीपिका क्या, आमतौर पर कोई भी फिल्मी हस्ती ‘पब्लिसिटी स्टंट’ के लिए एक बड़े अखबार के साथ टकराव का ऐसा जोखिम नहीं लेगी। फिर दीपिका जिस पृष्ठभूमि से हैं और बॉलीवुड उद्योग में उनकी जो हैसियत है, क्या पब्लिसिटी स्टंट के लिए उन्हें अलग से कुछ करने की जरूरत है?

अक्सर टीवी, अखबार या कुछ वेबसाइटों पर ‘उप्स मोमेंट’ के बहाने महिला कलाकारों की असुविधाजनक तस्वीरें प्रकाशित-प्रसारित कर दी जाती हैं। बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी खबरें कई छोटी-मोटी पत्रिकाएं और अखबार छापते रहते हैं। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। लेकिन जब खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा बताने वाला मुख्यधारा का मीडिया भी ऐसा करने में लग जाए तो यह कितना सही है! जबकि बात महिलाओं के सम्मान की होती है तो मीडिया उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगता है। खासकर टीवी चैनल में काम करने वाले लोग भी टीवी पर बैठ कर बहस करते हैं तो लगता है कि महिलाओं की इज्जत उनसे ज्यादा कोई नहीं करता। लेकिन हकीकत कुछ और है। ऐसे बहुत सारे लोग तो अपनी ही महिला सहकर्मियों की इज्जत करना नहीं जानते। वे हमेशा इस फिराक में रहते हैं कि कब मौका मिले और यह जता दें कि महिलाएं उनकी बराबरी नहीं कर सकतीं! यह ध्यान रखने की जरूरत है कि जिस विश्वसनीयता को बनाने में सालों लग जाते हैं, उसे खराब करने के लिए कुछ ही पल काफी होते हैं। मीडिया का काम मशहूर हस्तियों के बारे में खबरें दिखाना जरूर है, लेकिन उसे किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

 

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