बीते दिनों भारत नेपाल संबंधों में काफी तनाव देखने को मिला। दोनों देशों के संबंधों की बुनियाद 1950 में हुई शांति एवं मित्रता पर आधारित है। इसी संधि के आधार पर दिन में देशों की सीमाएं खुली रहती हैं। नागरिकों के आवागमन पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं होता है। दोनों देशों के मध्य विवाद की शुरुआत 2008 के बाद से देखा जा सकता है, जब नेपाल में सालों पुराने राजतंत्र की समाप्ति और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई।

इसी आलोक में नेपाल में आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता को देखा जा सकता है, जिसका दोष नेपाल भारत को देता है। नेपाल यह आरोप लगाता रहा है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में दखल देता है। 2015 में प्रतिनिधित्व के लिए उपजे मधेसी आंदोलन के पीछे नेपाल भारत का हाथ होने का आरोप लगाता रहा है। ऐसी और भी घटनाएं हैं, जिन्होंने दोनों देशों के बीच टकराव की पृष्ठभूमि को तैयार किया है।

हाल ही में भारत के द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के उद्घाटन के बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद खड़ा हुआ। नेपाल यह दावा करता है कि जिस क्षेत्र में सड़क का निर्माण किया गया है, वह नेपाल की जमीन है, जिसका आधार वह 1816 में हुई सुगौली की संधि को मानता है। नेपाल यह भी दावा करता है कि लिपुलेख, लिम्पियधुरा और कालापानी उसके क्षेत्र हैं।

ऐसे में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद खड़ा हो गया है। इन सबके बीच यह विचार करना होगा कि नेपाल की तरफ से जब भारत और चीन के मध्य गलवान घाटी में सैनिक झड़प हुई, उसी समय सीमा विवाद को जन्म दिया गया। सवाल है कि क्या चीन नेपाल को एक मोहरे के रूप में प्रयोग कर रहा है?

यह भी देखना होगा कि नेपाल ने सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों पर अपना दावा किया, जिसके हित चीन के साथ जुड़े हैं। बल्कि दोनों देशों के मध्य विवादित क्षेत्र सुस्ता को नेपाल ने अपने नए मानचित्र में नहीं दिखाया। इन सभी विवादों में इस बात पर ध्यान देना होगा। ऐसा लगता है कि चीन द्वारा नेपाल को भारत पर दबाव डालने के लिए कूटनीतिक रूप से प्रयोग किया जा रहा है। नेपाल के आंतरिक मामलों में चीन का बढ़ता हस्तक्षेप भारत के लिए चिंता का विषय है।
भारत और नेपाल के बीच ‘पीपुल टू पीपुल रिलेशन’ हमेशा से मित्रवत रहे हैं, जिसका दबाव दोनों देशों की सरकार पर रहता है।

ऐसे में दोनों देशों को सीमा विवाद को भारत को जल्द से जल्द समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे चीन को यह मौका न मिले कि वह नेपाल में अपनी पकड़ मजबूत कर सके। भारत नेपाल संबंध दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण संबंधों के उदाहरण के रूप में देखा जाता रहा है। नेपाल की स्थिति भारत के लिए भूराजनीतिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण है।
’शेषमणि शर्मा, इलाहाबाद विवि, प्रयागराज

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