देश की राजधानी में अफ्रीकी नागरिकों पर हुए हमलों की जितनी निंदा की जाए कम है। पता नहीं हम क्यों इतने अंध-भावुक हो जाते हैं कि किसी एक घटना के जवाब में बिना सोचे-समझे बदला लेने दौड़ पड़ते हैं। और बदला भी किससे? उन कसूरवारों से नहीं, बल्कि उन्हीं के वर्ग से जुड़े बेकसूर लोगों से। यह हमारे देश का रिवाज बन गया है कि किसी वर्ग विशेष से जुड़े कुछ व्यक्तियों के कारनामों की सजा हम उनके पूरे वर्ग को देने में लग जाते हैं। इसके उदाहरण जातीय और सांप्रदायिक दंगों के दौरान अक्सर देख जाते हैं।

हमलावरों की इन करतूतों से न तो कोई समाधान खोजे जा सकते हैं और न अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को बचाया जा सकता है। उलटा हम उनके लिए खतरा ही पैदा कर रहे हैं। इन घटनाओं को सुन कर प्रतिक्रिया में अफ्रीकी लोग वहां रह रहे भारतीयों पर जवाबी हमला करेंगे। परिणाम क्या निकलेगा? कोई इनसे पूछे कि ऐसा करके हम कौन-सा सही काम कर रहे हैं?

कांगो में हुई भारतीय छात्र की हत्या अत्यन्त निंदनीय है। उसका दुख सबको है, शायद उस देश में रहने वालों को भी होगा और हमारे देश में रह रहे अफ्रीकियों को भी। हम किसी देश में हुई एक घटना के लिए सभी देशवासियों को दोषी नहीं मान सकते। और फिर जिन लोगों पर हमला हुआ है, ये लोग न उस वक्त घटनास्थल पर थे और न वहां रह रहे थे। इनमें से अधिकतर लोग पिछले तीन साल से भारत में ही रह रहे हैं।
इस मामले में सरकार को न सिर्फ अफ्रीकी नागरिकों की सुरक्षा बढ़ानी चाहिए बल्कि हमलावरों को गिरफ्तार कर उन पर उचित कार्रवाई भी करे ताकि आने वाले समय में अंध-भावुकता के चलते हम वैश्विक-कुटुंबकम की संवेदनशीलता न खो दें।

’विनय कुमार, नई दिल्ली</strong>