हमारे समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी अंधविश्वासों और दकियानूसी परंपराओं के जाल में फंसा हुआ है। ताज्जुब की बात है कि शिक्षित समाज भी बहुत-सी परंपराओं और अंधविश्वासों को बिना विचार किए ज्यों का त्यों स्वीकार कर रहा है।

हम यह तक नहीं देख रहे कि इन परंपराओं-अंधविश्वासों का कोई आधार है भी या नहीं ।

हमारी बहुत-सी मान्यताएं विज्ञान और आधुनिक ज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं। सरकार ने दकियानूसी मान्यताओं, आडंबरों और जादू टोने से प्रताड़ित होने वाले लोगों को न्याय दिलाने के लिए ‘टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005’ लागू किया मगर यह किताबों तक सिमट कर रह गया है।

क्या देशवासियों को कभी इस घातक जकड़बंदी से मुक्ति मिलेगी?

पंकज कसरादे, मुलताई (मप्र)

 

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