‘पुलिस का चेहरा’ (संपादकीय) पढ़ा। भारत में आए पुलिस की बर्बरता की कहानियां आती ही रहती हैं! कहीं वह विद्यार्थियों पर तो कहीं मजदूरों पर, कहीं किसानों पर, तो कहीं बेरोजगार युवकों आदि पर उनकी जायज मांगों पर भी सत्ताधारियों के इशारों पर बर्बरतापूर्ण ढंग से क्रूरतम दमन करती नजर आती है। आखिर हमारे देश की पुलिस अपनी ही जनता के प्रति इतनी क्रूर,बर्बर और असहिष्णु क्यों हो गई है? जबकि दुनिया के अधिकतर सभ्य और उन्नतिशील देशों में वहां की पुलिस का चरित्र और व्यवहार अपनी जनता के लिए एक ‘रक्षक संकटमोचन और उद्धारक’ के रूप में है। कभी कुछ इससे इतर गड़बड़ होती है तो समूचे देश में इसके खिलाफ हवा बन जाती है।

दरअसल, भारतीय पुलिस की स्थापना ब्रिटिश साम्राज्यवाद के समय में अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य का विरोध करने वाले भारतीयों को दंडित करने के लिए किया था। देश की स्वतंत्रता के बाद भी पुलिस के इस रवैये में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ। शहीद-ए-आजम दिवंगत भगत सिंह ने कहा था कि इस देश के स्वतंत्र होने के बाद भी यहां की आम जनता, मजदूरों, किसानों के जीवन और उनके शोषण और दमन में कोई खास बदलाव नहीं होगा, क्योंकि यहां सत्ता परिवर्तन तो हो जाएगा, पर शासन करने में उसका चरित्र परिवर्तन नहीं होगा… गोरे अंग्रेजों की जगह देशी भूरे अंग्रेज आ जाएंगे। शोषण जारी रहेगा और भी बढ़ जाएगा। आज भगतसिंह की वे बातें सच साबित हो रही हैं।

आजादी के बाद असंख्य बार आदिवासियों, दलितों, कमजोर लोगों, मजदूरों, किसानों, विद्यार्थियों, महिलाओं आदि के साथ भारतीय पुलिस ने इंतिहा के हद तक बर्बर अत्याचार, हत्या, बलात्कार, एनकाउंटर आदि घटनाएं हुई होंगी। लेकिन कुछ पुलिसकर्मियों के निलंबन से ज्यादा आगे बात नहीं पढ़ती। कुछ दिनों बाद फिर वही बर्बरता, हत्या, बलात्कार, एनकाउंटर आदि की पुनरावृत्ति होती रहती है, गरीब-गुरबे, कमजोर, दबे-कुचले, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक मरते रहते हैं!

मध्यप्रदेश के गुना के जगनपुर क्षेत्र में वह किसान इस स्वतंत्र भारत में एक जमीन का टुकड़े के लिए पैसे देकर उसे किराए पर लेकर अपने बीवी-बच्चों के लिए अन्न ही पैदा कर रहा था। पुलिस वालों से वह अपनी फसल पकने की मोहलत ही मांग रहा था। वह जमीन का मालिकाना हक तो नहीं मांग रहा था! भारतीय कानून में फांसी पाए मुजरिम से भी एक बार उसकी अंतिम इच्छा पूछ कर उसे पूरा किया जाता है।

इसका एक ही समाधान है कि भारतीय पुलिस का यह दमनात्मक चरित्र को बदलने के लिए इसके ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर के बर्बर चरित्र को बदल कर आज स्वतंत्र भारत की आम गरीब जनता, मजदूरों, किसानों, छोटे व्यापारियों, रिक्शे वालों, रेहड़ी-पटरी वालों, टैक्सी-टेम्पो वालों आदि से सहयोगात्मक, सहिष्णु और रक्षक की भूमिका तय करने की जिम्मेदारी के साथ चारित्रिक गुण वाला भारतीय पुलिस का पुनर्गठन होना चाहिए, तभी यहां की पुलिस सुधरेगी। केवल तबादला या निलंबन से कुछ नहीं बदलता।
निर्मल कुमार शर्मा,गाजियाबाद

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