प्राचीनकाल से ही मानव को अपने सहित इस धरती और इस धरती पर अन्य सभी जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई, इसके प्रति उत्कट उत्सुकता और जिज्ञासा रही है। इसे लेकर हमारे पूर्वज अपनी नंगी आंखों और अपने साधारण उपकरणों की मदद से ही इस पृथ्वी से दूर स्थित ग्रहों, उपग्रहों और तारों को भी उत्सुकता भरी निगाहों से देख कर यह अनुमान लगाते रहे हैं कि हमारे तरह के जीव और सभ्यताएं संभवत: सुदूर अंतरिक्ष स्थित ग्रहों, उपग्रहों और तारों में भी हो सकती हैं।
लेकिन आज उन्नतिशील वैज्ञानिक उपकरणों यथा आजकल की तरह रेडियो टेलिस्कोपिक दूरबीनों और सुदूर अंतरिक्ष में जाने वाले अंतरिक्ष यानों के न रहने से वे केवल कल्पना आधारित बातों और कल्पनाओं को करने को बाध्य थे। अब आधुनिक युग में मानव अत्यधिक परिष्कृत वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से अब करोड़ों-अरबों प्रकाश वर्ष दूर स्थित ग्रहों, तारों और निहारिकाओं का अपने उच्च शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से अध्ययन कर सकता है और अपने ताकतवर अंतरिक्ष यानों को भेज कर करोड़ों किलोमीटर दूर स्थित ग्रहों, उपग्रहों और क्षुद्र ग्रहों का बखूबी अध्ययन कर सकता है।
इसी तरह की एक सफलता हाल ही में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को मिली जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा आठ सितंबर 2016 को प्रक्षेपित ओसाइरस-रेक्स नामक अंतरिक्ष यान अपने चार वर्ष एक माह बारह दिन की यात्रा करने के बाद इस धरती से उनतीस करोड़ किलोमीटर दूर सुदूर अंतरिक्ष में एक अत्यंत छोटे क्षुद्र ग्रह तक पहुंचा है। यह साढ़े चार अरब साल पुराना है और लगभग आधा किलोमीटर बड़ा है। इसका नाम बेन्नू है। इस लंबी दूरी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां तक प्रकाश की गति से रेडियो सिग्नल जाने में भी पूरे सोलह मिनट लग जाते हैं!
वैसे इससे पूर्व जापान ने 2005 में अपना हायाबसा परीक्षण अंतरिक्ष यान को भेजा था, जो वहां की मिट्टी को लेकर 2010 में सकुशल धरती पर लौट आया था। इस प्रकार किसी क्षुद्र ग्रह से उसके मिट्टी के नमूने लाने वाला अमेरिका अब दूसरा देश बन गया है। नासा द्वारा प्रक्षेपित ओसाइरस-रेक्स नामक अंतरिक्ष यान बेन्नू क्षुद्र ग्रह के मिट्टी के नमूने के साथ 24 सितम्बर 2023 को इस धरती पर लौटेगा।
हमारी आकाशगंगा अलग तरह के रहस्यों से भरी पड़ी है, इंसान इसके रहस्य को जानने में जुटा हुआ है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार इस क्षुद्र ग्रह पर विविध प्रकार के खनिज पदार्थ हो सकते हैं। ये सारी कोशिशें और अरबों डॉलर का खर्च इसलिए किया जा रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इस धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई। पिछले दो सालों से यह उपग्रह उस क्षुद्र ग्रह का इसलिए चक्कर लगा रहा था, ताकि वह उस पर सुरक्षित उतरने के लिए इस क्षुद्र ग्रह की गति का सूक्ष्मता से अध्ययन कर सके।
यह क्षुद्र ग्रह अन्य क्षुद्र ग्रहों से इसलिए भिन्न है, क्योंकि यह दो क्षुद्र ग्रहों के टकराने से बना है, यह इसकी यह आकृति धरती स्थित शक्तिशाली दूरबीनों से भी स्पष्ट नजर आ जाती है। इस ग्रह की चट्टानों में वैज्ञानिकों को ओसाइरस में लगी शक्तिशाली दूरबीनों से काबोर्नेट और अन्य कार्बनिक पदार्थों की व्यापक मौजूदगी का पता लगा है, जो जीवन के लिए ‘आधार तत्त्व’ माने जाते हैं। ओसाइरस शब्द मिश्र के एक प्राचीन देवता का नाम है, जिसे मौत और अपराधों की दुनिया का देवता माना जाता है, इसका अर्थ शक्तिशाली भी होता है। यह शब्द मिश्र के ‘उसिर’ शब्द से लैटिन भाषा में आया है।
वैज्ञानिकों को क्षुद्र ग्रहों और धूमकेतुओं से पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में बहुत-सी जानकारी मिलने की उम्मीद है, क्योंकि क्षुद्र ग्रहों और धूमकेतुओं का निर्माण भी पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रहों, उपग्रहों के साथ हुआ था, लेकिन उन पर स्थित पदार्थों में अरबों सालों से कोई परिवर्तन और बदलाव ही नहीं हुआ है, जबकि पृथ्वी और दूसरे अन्य उपग्रहों और ग्रहों के पदार्थों में रासायनिक और भौतिक कारणों से बहुत परिवर्तन हो गया है। क्षुद्र ग्रहों और धूमकेतुओं पर मिलनेवाले पदार्थों जैसे पदार्थ इस पृथ्वी और अन्य ग्रहों पर मिल ही नहीं सकते।
’निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र