यह जाहिर-सी बात है कि जो गलत करेगा, उसे नकारात्मक परिणाम मिलेगा। अगर वर्तमान में हमारे साथ सब कुछ सही चल रहा है तो अतीत की उचित और अनुचित बातों का मिश्रण करके हमारे युवाओं या आने वाली पीढ़ियों के सामने रखना उनका भविष्य में देश के लिए समस्या बन सकती है। अगर ऐसे भेदभाव वाले विषयों को स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाएगा तो हमारी विविधता में बंटवारे का अनुपात बढ़ने लगेगा।

भारत विविधता में एकता रखने वाला देश है। नफरत की भावना रखने वाले लोग देश को विकास की राह से डगमगा देते हैं। जहां तक चुनावों की बात है, तो जब चुनाव प्रगति पर होते हैं तो हमारे नेता या पार्टी सब प्रकार से साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग करके सभी प्रकार की मयार्दा को खत्म करके सांप्रदायिकता पर उतर आते हैं। फिर दो धर्मों के लोग आपस में एक दूसरे का कटाक्ष करने लगते हैं। इसी तरह की बातों को प्रचार माध्यमों के जरिए युवा, बच्चों और सभी प्रकार के लोगों तक पहुंचाया जाता है। इससे कैसी तस्वीर बनती है?

स्वाभाविक ही लोगों के बीच आपस में कट्टरता बढ़ती जाती है। कभी एक दूसरे के सहयोगी रहे दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे के विरोधी के रूप में खड़े हो जाते हैं। ऐसी स्थितियों का अगला सिरा सांप्रदायिकता और दंगे होते हैं। ऐसे में हमारा देश हमारे भीतर कहां होता है? ऐसी प्रवृत्ति देश के विकास के लिए एक दीवार बन जाती है और देश पिछड़ने लगता है। इससे हमारी जनता, किसान और समूचे देश को नुकसान होता है। नेता लोग काम पर वोट नहीं मांग कर, धर्म पर वोट मांगने लगते हैं। यह किसी भी रूप में देशहित में नहीं होता है।
’आसिफ रजा, निठारी, अलवर, राजस्थान</p>

सेहत की फिक्र

कुछ लोगों ने अपने खानपान और जीवनशैली की आदत को बिगाड़ कर अपने स्वास्थ्य को खराब करने का काम तो किया ही है, साथ ही वे अपने बच्चों की सेहत को भी दांव पर लगा रहे हैं। मोटापा जानलेवा बीमारियों को न्योता देता है। हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश के बीच राज्यों में पांच साल से कम के बच्चों में कुपोषण और मोटापा बढ़ता जा रहा है।

इतनी छोटी उम्र में मोटापे का कारण बच्चों की सेहत की तरफ से गंभीरता से ध्यान न देना भी हो सकता है। इससे पहले भी राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ था कि देश में अशिक्षित या गरीब परिवारों के बच्चे ही नहीं, बल्कि शिक्षित और अमीर घराने के बच्चे भी पोषक आहार से दूर होते जा रहे हैं। अफसोस है कि अज्ञानता के कारण जिस देश में शिक्षित महिलाएं भी नवजात शिशु को अपना पोषक दूध पिलाने से कतराने लगी हों, वहां बाकी बातों की उम्मीद क्या की जाए!

गरीब लोगों के बच्चों का पोषक आहार न मिलने के मुख्य दो कारण हो सकते हैं। एक गरीबी और दूसरा कुछ गरीब परिवारों ज्यादा बच्चे पैदा होना। अमीर घराने के बच्चों का पोषक आहार से दूर रहने का कारण है इनके मां-बाप का ज्यादा पैसे कमाने की दौड़ में भागने कारण अपने बच्चों के खानपान की तरफ ध्यान नहीं देना। हमारे देश के गांवों में आज भी बुजुर्ग बच्चों की उचित परवरिश करते हैं, इनके खानपान का पूरा खयाल रखते हैं।

लेकिन आजकल लोग खाने-पीने में भी दूसरे देशों की नकल करने लगे हैं। कुछ लोगों के सिर के ऊपर इसका खूब खुमार भी चढ़ गया है और इसके वशीभूत होकर लोग अपनी सेहत का भी खयाल रखना भूल गए हैं। आज भारत में बच्चों का खानपान उचित न होने के कारण उनकी सेहत भी खराब हो रही है। छोटी उम्र में ही बच्चो को आंख, दांत और पेट की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब</p>