दुनिया भर में शार्ली एब्दो के कार्टून की पेशेवर आलोचना भी हुई है। इसके छापने न छापने पर हमेशा से कई राय रही हैं। कई लोगों का मानना है कि ये कार्टून जानबूझ कर भड़काने वाले रहे हैं।
शार्ली एब्दो में कई धर्मों के ऐसे कार्टून बनाए गए हैं। पर यही तरीका बेहतर है कि हम इसकी पेशेवर आलोचना करें। कहें कि फूहड़ है। बेकार है। नहीं छापने लायक है। घटिया व्यंग्य है।
सड़कों पर उतर कर लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना है तो वह भी कीजिए। लेकिन इसकी जगह बंदूक उठा लें, हिंसा करें, आग लगा दें तो यह एक फूहड़ कार्टून, फूहड़ फिल्म या संवाद से भी घटिया और अधार्मिक काम है। हमें एक नागरिक के तौर पर खुद को तैयार करना चाहिए कि हम धर्म की सख्त से सख्त आलोचनाओं को सुनें और सहन करें। अन्यथा हम किसी संगठन के इस्तेमाल किए जाने लायक खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
धर्म का इस्तेमाल डरने और डराने के लिए न हो। जैसे किसी भी लोकतंत्र में सवाल करने का जज्बा ही आपको बेहतर नागरिक बनाता है उसी तरह किसी भी धर्म में अनादर करने का संस्कार ही आपको बेहतर ढंग से धार्मिक बनाएगा।
धर्म की सत्ता ईश्वरीय नहीं है। इसके नाम पर सत्ता बटोरने वाले लौकिक हैं। इस जगत के हैं। इसलिए उन्हें सवालों के जवाब तो देने होंगे।
मंदीप यादव, खैरथल, अलवर
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