क्या राष्ट्रमंडल संसदीय संघ पाकिस्तान की बपौती है जो उसने संघ के इकसठवें अधिवेशन की मेजबानी करते हुए भारत के सभी राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों को तो आमंत्रित किया मगर जम्मू-कश्मीर के विधानसभा अध्यक्ष को अप्रासंगिक नियमों का हवाला देकर नहीं बुलाया।
वह अब तक भी भारत की अंदरूनी एकता को शायद समझ नहीं सका है। भारत के प्रति उसकी द्वेषपूर्ण कार्रवाई जगजाहिर होने के साथ यह कदम उसके लिए गले की हड्डी बन गया है।
इस एकपक्षीय फैसले का सभी राज्यों ने संयुक्त रूप से लोकसभा अध्यक्ष के नेतृत्व में न केवल विरोध किया बल्कि पाकिस्तान को दो टूक कह दिया कि या तो जम्मू-कश्मीर के विधानसभा अध्यक्ष को अधिवेशन में आमंत्रित किया जाए या फिर अधिवेशन का स्थान बदल कर अन्य किसी देश में रखा जाए।
मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में संभावना तो यह है कि पाकिस्तान को आखिरकार भारत के सामने झुकना पड़ेगा चाहे ऐसा पुराने नियमों के संबंध में भूल सुधार करते हुए ही क्यों न करना पड़े।
अंबरीष भावसार, गोपाल कालोनी, झाबुआ
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