दहशत के ठिकाने’ (संपादकीय, 18 दिसंबर) पढ़ा। पाकिस्तान के पेशावर में जो हैवानियत हुआ, उससे उपजे दुख के लिए शब्द भी कम पड़ गए हैं। धर्म और धर्म के ठेकेदारों ने बच्चों, शिक्षकों को मार कर जो कुकृत्य किया है, उसके लिए उन्हें किसी भी तर्क पर माफ नहीं किया जा सकता।
एक तालिबानी संगठन ने कहा कि सेना को सबक सिखाने के लिए और अपनों का दर्द महसूस कराने के लिए यह किया गया। लेकिन यह इंसानियत पर ऐसा हमला है, जिससे उबरने में सिर्फ पाकिस्तान को नहीं, संपूर्ण मानवता को भी वक्त लगेगा।
इस मामले में पाकिस्तान का दोहरा रवैया भी जिम्मेदार रहा है। भारत न जाने कब से ऐसे दर्द को झेल रहा है, पर पाकिस्तान ने हमेशा इस पर सियासत किया है। सच ही कहा गया है कि अपराध अपने बाप को भी खा जाता है। पाकिस्तान को समझना होगा कि भारत और संपूर्ण विश्व के साथ मिल कर ही तहरीक-ए-तालिबान और तमाम ऐसे दहशतगर्दों को खत्म किया जा सकता है। आतंक का कोई धर्म-ईमान नहीं होता।
राहुल, नोएडा
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