पाकिस्तान के पास मोहरों की कमी नहीं है, पर ये मोहरे कब और कैसी चाल चल देंगे यह खुद पाकिस्तान को भी पता नहीं होता है। अगर किसी को पता होता भी है, तो इतना तय है कि पाक हुक्मरान को पता नहीं होता कि हो क्या रहा है! पाकिस्तान की कमान या यों कहें गुप्त सत्ता, सेना और आइएसआइ के पास है, चुनी हुई सरकारें तो वहां बस कठपुतली हैं। इतिहास गवाह है पाकिस्तानी सियासत की इस हकीकत का।

दरअसल, पाकिस्तान हर संधि और बातचीत के लिए जितनी जल्दी तैयार हो जाता है उतनी जल्दी वह पलटी भी मार लेता है या फिर कोई न कोई व्यवधान पैदा कर ही देता है। अब हालिया संदर्भ को ही देख लें। पहले से प्रस्तावित दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत से पूर्व अड़ंगा लगाने की कोशिश खुद पाक की तरफ से की गई है।

बातचीत की पूर्वसंध्या पर ही कश्मीर के अलगाववादियों को दावत पर बुलाना पाकिस्तान के संवाद और शांति प्रक्रिया में अविश्वास को दर्शाता है। साथ ही यह भी बताता है कि पाकिस्तान सरकार कितनी लाचार और बेबस है। वरना कोई चुनी हुई सरकार इस तरह का व्यवहार नहीं करती है, वह भी यह जानते हुए कि पहले इसी तरह के व्यवहार के कारण भारत सरकार ने हर तरह की बातचीत को रद्द कर दिया था।

बातचीत की प्रक्रिया बंद होने से अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों के मनोबल और क्रियाकलापों में वृद्धि होती है। भारत सरकार को मजबूती से इन तत्त्वों के अड़ंगों से निपटना चाहिए ताकि दोनों देशों के बीच बातचीत की प्रक्रिया बंद न हो सके। पाकिस्तान से किसी और सकारात्मक कदम की उम्मीद बेमानी है इसलिए भारत को ही आगे बढ़ कर पहल करते रहना होगा पर अपने हितों के शर्तों पर नहीं।

केशव झा, दरभंगा

 

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